घट रहा भू जल का स्तर, वाटर हार्वेस्टिंग की जरूरत

बरसात के मौसम में सड़कों से होकर बह जाता है लाखों लीटर पानी

घट रहा भू जल का स्तर, वाटर हार्वेस्टिंग की जरूरत

कोटा में लगातार गिरते भू जल के स्तर से आने वाले समय में खेती में सिंचाई के लिए भू जल की मात्रा कम होना निश्चित है।

कोटा। कोटा में पानी के लिए चंबल नदी मौजूद है जिससे कोटा सहित आस पास के सभी इलाकों में पर्याप्त जलापूर्ति की जा सकती है। वहीं कई इलाके ऐसे भी हैं जहां पर पानी के लिए लोगों को बोरवेल या कुओं पर निर्भर रहता पड़ता है। इस बीच देखा जाए तो कोटा में मानसून के दौरान हर साल लाखों लीटर पानी बरसता है। जो नालियों, सड़कों और बड़े नालों के रास्ते नदियों में जा मिलता है। लेकिन अगर इसी पानी का संरक्षण करें तो इससे कोटा का भू जल स्तर बढ़ाया जा सकता है। जो कुओं, तालाबों और बोरवेल में काम आ सकता है। क्योंकि कोटा के छ में से चार ब्लॉक अतिदोहित क्षेत्रों में शामिल हैं। जिनमें पानी का रिचार्ज होने से ज्यादा पानी की निकासी हो रही है। 

अलग अलग विभाग करते हैं वाटर हार्वेस्टिंग कार्य
भू जल विभाग के सूत्रों के अनुसार जिले के सभी विभाग अपने अपने स्तर पर वाटर कंजर्वेशन और हार्वेस्टिंग का कार्य करते हैं। जिसमें वो भू जल का स्तर बढ़ाने के लिए कई तरह की गतिविधियां उपयोग में लाते हैं। लेकिन वाटर हार्वेस्टिंग का कोई अभियान या योजना नहीं होने के चलते इनकी किसी प्रकार की मॉनिटरिंग नहीं हो पाती है। हालांकि भू जल विभाग की ओर से जिले के सांगोद तहसील में अटल भू जल योजना के तहत भू जल को बढ़ाने और उसके संरक्षण पर काम किया जा रहा है। क्योंकि ये क्षेत्र कोटा के सबसे अधिक दोहित इलाकों में शमिल है। जहां हर साल 148 फीसदी भू जल का दोहन किया जाता है। यानि इस इलाके में हर साल धरती से 148 लीटर पानी निकाला जाता है और केवल 100 लीटर पान ही जमीन में वापस पहुंच पाता है। इसी तरह कोटा शहर में 119 फीसदी, खैराबाद ब्लॉक में 119 फीसदी, लाडपुरा में 113 फीसदी पानी का दोहन हो रहा है।

केवल सांगोद में ही संचालित अटल भू जल योजना
कोटा जिले के छ में से चार ब्लॉक के अतिदोहित श्रेणी में शामिल होने के बाद भी केवल सांगोद तहसील में ही अटल भू जल योजना के तहत पानी के संरक्षण पर जोर दिया जा रहा है। बाकि बचे पांच ब्लॉक में से तीन ब्लॉक अभी भी अतिदोहन की श्रेणी में है। कोटा में लगातार गिरते भू जल के स्तर से आने वाले समय में खेती में सिंचाई के लिए भू जल की मात्रा कम होना निश्चित है।

ग्रामीण में भी नहीं वाटर हार्वेस्टिंग के नियम
प्रदेश सरकार की ओर से अटल भू जल योजना के तहत केवल चुनिंदा तहसीलों या स्थानों पर ही अटल योजना का संचालन किया जा रहा है। ऐसे में जिन इलाकों में बरसात के दौरान अच्छी बारिश होती है। उन इलाकों का पानी सड़कों से बहता हुआ नदियों में जाकर मिल जाता है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार कोटा जिले में हर साल मानसून के दौरान औसतन 1 हजार एमएम बारिश होती है। जिसमें से केवल 10 से 15 फीसदी पानी ही जमीन में समा रहा है और बड़ा हिस्सा नालों के सहारे नदी से होते हुए समुद्र में जाकर मिला रहा है।

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वाटर हार्वेस्टिंग और विकल्पों पर देना होगा जोर 
वाटर हार्वेस्टिंग किसी इलाके में पानी के स्त्रोत पर निर्भर करता है। अगर किसी इलाके में व्यक्ति को जलदाय विभाग उसकी आवयश्कता के अनुरूप पानी उपलब्ध करा सकता है तो वो उसके जरीए पानी का उपभोग करेगा। वहीं अगर जलदाय विभाग नहीं करा सकता तो अन्य स्त्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है। ऐसे में अगर वो बोरेवेल या किसी भू जल स्त्रोत का उपयोग करता है तो उसे भू जल का स्तर बढ़ाने के लिए वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना होता है। भू जल के स्तर को बढ़ाने के लिए हमें वाटर हार्वेस्टिंग और विकल्पों पर जोर देना होगा।
- सुबोध मेहता, भू जल वैज्ञानिक

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