शेरगढ़ व भैंसरोडगढ़ सेंचुरी में 5 करोड़ से बनेगा हबीर्वोर ब्रिडिंग सेंटर, प्रत्येक एनक्लोजर 100 लाख से बनेगा
चीते आने से पहले तैयार होगी फूड चैन
15 से 20 हैक्टेयर के बनेंगे 3 एनक्लोजर,लेपर्ड प्रूफ होंगे एनक्लोजर , ब्लैक बक व चिंकारा की होगी वंशवृद्धि ।
कोटा। मध्यप्रदेश के बाद राजस्थान में चीतों की एंट्री सबसे पहले शेरगढ़ व भैंसरोडगढ़ अभयारणय से होगी। लेकिन, चीते लाने से पहले दोनों सेंचुरी में उनके भोजन (प्रे-बेस) बढ़ाना होगा। जिसके लिए कोटा वन्यजीव विभाग करोड़ों की लागत से हबीर्वोर ब्रिडिंग सेंटर बनाने जा रहा है। जिसके माध्यम से ब्लैक बक व चीतलों की संख्या बढ़ाई जाएगी। ताकि, चीतों के लिए यहां पर्याप्त भोजन की उपलब्धता हो सके। दरअसल, शेरगढ़ व भैंसरोडगढ़ सेंचुरी में 500 लाख की लागत से 3 हबीर्वोर एनक्लोजर बनाए जाएंगे। जिसमें चीतल, ब्लैक बक सहित हिरण की अन्य प्रजातियों को रख उनकी वंश वृद्धि की जाएगी।
प्रत्येक एनक्लोजर 100 लाख से बनेगा
डीएफओ भटनागर ने बताया कि प्रत्येक हबीर्वोर एनक्लोजर 100 लाख की लागत से बनाए जाने हैं। भैंसरोडगढ़ में वनखंड नीमड़ी-आगरा में एक तथा शेरगढ़ अभयारणय के वनखंड नाहरिया व बारापाटी में दो एनक्लोजर बनेंगे। प्रत्येक एनक्लोजर में 40-10 के रेशो में चीतल व ब्लैक बक रखे जाएंगे। प्रथम फेज में 40 मादा और 10 नर होंगे। यह एनिमल साल में दो बार ब्रिडिंग करता है। मादा एक बार में दो बच्चों को जन्म देती है। ऐसे में एक साल में ही एबीर्वोर एनिमल्स की संख्या दो गुना हो जाएगी। इस तरह से भविष्य में इनका जनसंख्या घनत्व में इजाफा होगा।
ऐसे होगी चीते की हाड़ौती में एंट्री
विशेषज्ञों के अनुसार, मध्यप्रदेश से राजस्थान तक 400 वर्ग किमी के क्षेत्र में चीता लैंडस्केप बनाया जाना प्रस्तावित है। इसके लिए कार्य योजना तैयार की जा रही है। मध्यमप्रदेश का कूनो अभयारणय का क्षेत्र शेरगढ़ से जुड़ा है। जबकि, गांधी सागर सेंचुरी चित्तौड़ व भैंसरोडगढ़ से जुड़ा है। वर्तमान में गांधी सागर में चीतों को शिफ्ट किया जा चुका है। जब भी यहां हार्ड रिलीज होंगे तो चीतों की भैंसरोडगढ़ में एंट्री सौ फीसदी होगी। यहां का भगौलिक वातावरण चीते के अनूकूल है। पूर्व में भी चीता कूनों से निकल बारां के शाहबाद के जंगल तक आ चुका है।
5 करोड़ से बनेंगे 3 एनक्लोजर
वन्यजीव विभाग कोटा के उप वन संरक्षक अनुराग भटनागर ने बताया कि भैंसरोडगढ़ शेरगढ़ सेंचुरी में 15 से 20 हैक्टेयर में तीन प्रे-बेस एनक्लोजर बनाए जाएंगे। जिसके लिए कैम्पा मद से 5 करोड़ का बजट मिला है। इसकी तैयारियां भी शुरू कर दी गई है। अभी एस्टीमेट बनाए जा रहे हैं। जल्द ही टैंडर प्रक्रिया की जाएगी।
लेपर्ड फ्रूफ होंगे एनक्लोजर
उन्होंने बताया कि दोनों सेंचुरी में बनाए जाने वाले एनक्लोजर पूरी तरह से लेपर्ड फ्रूफ होंगे। उनका डिजाइन इस तरह से होगा कि लेपर्ड के अलावा भी अन्य मांसाहारी जानवरों से एनक्लोजर में रखने वाले शाकाहारी जानवरों को कोई खतरा नहीं होगा। इसके अलावा एनक्लोजर में घास के मैदान डवलप कराए जाएंगे और पानी की समुचित व्यवस्था के लिए सौलर बोरिंग की जाएगी। जब हबीर्वोर को सुरक्षित रहवास, भोजन-पानी की भरपूर उपलब्धता मिलेगी तो ब्रिडिंग भी अच्छी होगी। जिससे वंश वृद्धि होगी। इनकी संख्या में इजाफा होना बेहद जरूरी है, क्योंकि शेरगढ़ व भैंसरोडगढ़ सेंचुरी चीता लैंडस्केप है। यहां भविष्य में चीते की एंट्री होने की प्रबल संभावना है।
500-500 हैक्टेयर में तैयार किया ग्रासलैंड
शेरगढ़ व भैंसरोडगढ़ सेंचुरी में 500-500 हैक्टेयर में ग्रासलैंड तैयार कर चुके हैं। वर्तमान में घास तीन-तीन फीट से ज्यादा की हो चुकी है। जब जमीन पर बीज गिरेंगे तो बारिश में तीन गुना घास फिर से उगकर तेजी से बढ़ेगी। अभी समस्या यह है, बीज आने से पहले ही मवेशी घास चर जाते हैं। जिससे घास पनपने से पहले ही नष्ट हो जाती है। जबकि, शाकाहारी वन्यजीवों का मुख्य भोजन ही चारा होता है। पर्याप्त भोजन के अभाव में इनकी संख्या में तेजी से गिरावट होती जा रही है।
हाड़ौती के शेरगढ़ व भैंसरोडगढ़ का जंगल चीते के अनूकूल है। यहां ग्रासलैंड व पठारी क्षेत्र अधिक है, जो चीते का नेचुरल हैबीटॉट है। ऐसे में यहां फ्रूड चेन डवलप हो, इसके लिए दोनों सेंचुरी में 5 करोड़ की लागत से हबीर्वोर एनक्लोजर बनाया जाएगा। इसके लिए कैम्पा मद से बजट भी मिल चुका है। जल्द ही एस्टीमेट बनाकर कार्ययोजना को अंतिम रूप दिया जाएगा। इन एनक्लोजर में चीतल व ब्लैक बक रखे जाएंगे। ब्रिडिंग होने से उनकी वंश वृद्धि हो सकेगी।
-अनुराग भटनागर, डीएफओ वन्यजीव विभाग
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