अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस विशेष - सालाना 4.66 अरब की चाय पी जाता है कोटा

कोटा में सालाना 13.44 लाख किलो बिक जाती है चाय

अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस विशेष - सालाना 4.66 अरब की चाय पी जाता है कोटा

कोटा में प्रति व्यक्ति चाय की सालाना खपत शहरी और ग्रामीण इलाकों के हिसाब से अलग-अलग है। आंकड़ों के मुताबिक कोटा के ग्रामीण इलाकों में अब भी 650 ग्राम प्रति व्यक्ति सालाना चाय की खपत होती है, जबकि शहरी इलाके में यह बढ़कर करीब 706.1 ग्राम प्रति व्यक्ति सालाना तक पहुंच जाती है।

 कोटा। पिछले दो साल कोरोना ने लोगों के जीवन में बहुत कुछ बदलाव किए है। लोगों के रोजगार बदले, लाइफ स्टाइल बदली, वहीं आम और खास पेय चाय का जायका भी पूरी तरह बदल दिया। अब तक लोग चुस्ती  फूर्ती और ऊर्जा के लिए चाय पीते थे। यहीं चाय अब इम्युनिटी बूस्टर के रूप में काम आ रही है। कोटा में 13.34 लाख किलो चाय पत्ती खरीदने में 54 करोड़ 69 लाख 40 हजार रुपए खर्च किए जाते हैं। वर्तमान में मोटे दाने की चाय 470 रुपए किलो व छोटे दाने के चाय पत्ती 410 रुपए किलो बिक रही है। चाय पत्ती से दस गुना ज्यादा दूध चीनी अदरक इलाइची पर खर्च करना पड़ता है। अकेले  कोटा में  लोग सालाना 4.66 अरब की चाय पी जाते हंै।  आजादी के बाद कोटा की कई कंपनियां चाय के कारोबार में शामिल हुईं तो यहां के ब्रांड भी देशभर में छाने लगे। कोरोना काल में आयुष मंत्रालय ने अपनी  गाइड लाइन में  भी कोरोना वायरस से बचने के लिए अपने शरीर की इम्युनिटी बढ़ाने पर जोर देते हुए सुझावों में काढ़ा, तुलसी की चाय, गर्म पानी का सेवन जैसे घरेलू उपायों को जनता के साथ साझा किया है। नियमित रूप से सीमित मात्रा में इस लाल चाय का उपयोग किया जाए तो सांस से संबंधित बीमारी जल्दी से अटैक नहीं कर पाती है।  कोरोना भी सबसे पहले हमारे श्वसनतंत्र पर ही हमला करता है। ऐसी स्थिति में घरों में अब मसाला चाय, तुलसी, पौदीना और लेमन टी का चलन बढ़ गया है। लॉकडाउन के दौरान चाय पत्ती की मांग बढ़ने से इसके भावों में 150 रुपए तक उछाल आ गया था। अभी चाय 410 से 420 रुपए किलो बिक रही है। यहीं चाय मार्च 2020- 21 तक लॉकडाउन से पहले 180 से 200 रुपए किलो थी। 
 
बागानों में काम करने वाले मजदूरों का सम्मान दिवस है टी डे
देश के पांच प्रमुख चाय उत्पादक देश चीन, भारत, केन्या, वियतनाम और श्रीलंका के अलावा मलावी, तंजानिया, बांग्लादेश, यूगांडा, इंडोनेशिया और मलयेशिया में 15 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस मनाया जाता है। 

देश में अब 21 मई को मनाया जाता है टी डे
भाारत की सिफारिश पर 21 मई को अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस घोषित किया है।  भारत ने यह प्रस्ताव 4 साल पहले दिया था। अभी हर साल 15 दिसंबर को चाय उत्पादन करने वाले देशों में अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस मनाया जाता है। 

54.69 करोड़ कप चाय पी जाता है कोटा
अर्थशास्त्री डॉ. जसप्रीत सिंह ने बताया टी बोर्ड आॅफ इंडिया की ओर से जारी आंकड़ों पर नजर डालें तो कोटा में प्रति व्यक्ति चाय की सालाना खपत शहरी और ग्रामीण इलाकों के हिसाब से अलग-अलग है।  आंकड़ों के मुताबिक कोटा के ग्रामीण इलाकों में अब भी 650 ग्राम प्रति व्यक्ति सालाना चाय की खपत होती है, जबकि शहरी इलाके में यह बढ़कर करीब 706.1 ग्राम प्रति व्यक्ति सालाना तक पहुंच जाती है। दोनों को मिलाकर देखा जाए तो कोटा में सालाना करीब 13.34 लाख किलो चाय की पत्ती खपत होती है। इसकी कीमत 54.69 करोड़ से ज्यादा बैठती है। कप के हिसाब से बात करें तो कोटा औसतन एक साल में 54.69 करोड़ कप चाय  पी जाता है। इसमें से 78 फीसदी खपत सिर्फ दूध की चाय में पड़ने वाली पत्तियों की है, जबकि 22 प्रतिशत हिस्सा ग्रीन टी, लेमन टी और कहवा आदि फ्लेवर्ड टी का है।

घरों में शुरू हुई पुदीना, लेमन और तुलसी चाय
सोनू कंवर ने बताया कि चाय अब आम से खास बन गई है लाइफ स्टाइल और खान पान में बदलाव के साथ चाय के जायके में भी खाफी बदलावा आया है।  घरों में बनने वाली अदरक  इलायची वाली चाय का  फ्लेवर अब बदल गया है। अब लोग चाय को इम्युनिटी बुस्टर के रूप में तैयार कर पी रहे हंै। घरों में अब चाय में लोग, काली मिर्च, तुलसी, अदरक मिक्स चाय बनना शुरू हो गई है। इसके अलावा लेमन टी, , मिंट टी, मसाला टी ,ज्यादा बन रही है। लोग सर्दी में  ब्लैक टी को काढे के रूप में इस्तेमाल कर इम्युनिटी बढ़ा रहे हैं। 

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पत्ती से ज्यादा दूध-चीनी पर खर्च
होलसेल चाय विक्रेता हिरामल चेलारमानी ने बताया कि कोटा में ज्यादातर बारीक दाने वाली चाय बिकती है जो 410 रुपए किलो व मोटे दाने वाली चाय पत्ती 470 रुपए किलो बिक रही है। इसके अलावा 15 तरह के फ्Þलेवर की चाय पत्ती बाजार में मौजूद है। लेकिन चलन में सादी चाय ही ज्यादा है।  दौर के साथ भले ही चाय पीने के तरीके और ब्रांड कितने भी बदल चुके है।  लेकिन अब भी 78 फीसदी कोटावासी दूध वाली चाय पीते हैं। यह अकेले चाय की पत्तियों से तो बनने से रही। इसके लिए दूध, चीनी, अदरक, इलाइची और गैस भी चाहिए।  टी बोर्ड आॅफ इंडिया और विश्व खाद्य संगठन की सालाना रिपोर्ट के आधार पर चाय बनाने में पत्ती से करीब दस गुना ज्यादा खर्च बाकी सामान पर होता है। अकेले कोटा में ही इन सब पर सालाना औसत खर्च 4.66 अरब रुपए बैठता है।

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चाय को स्टेटस सिंबल बनाने का लक्ष्य
फ्लेवर टी विक्रेता जगदीश ने बताया कि  देश में चाय को स्टेटस सिंबल बनाना चाहते हैं। अभी हमारे देश में कॉफी को स्टेटस सिंबल माना जाता है, लेकिन मैं चाय को कॉफी के मुकाबले खड़ा करना चाहता हूं। अभी   चाय बाजार में  प्रतिस्पर्धा का माहौल नहीं है।  यह बाजार अभी पारंपरिक ढंग से ही चल रहा है, जिससे इस क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ने के काफी मौके हैं। चाय के साथ इनोवेशन के लिए बड़े ही अनूठे ढंग से हमने अपनी विभिन्न फ्लेवर वाली चाय के नाम रखे हैं। भारत चाय का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है। हमें वहां सबसे अच्छी चाय पीनी चाहिए। लेकिन, यहां पर ज्यादातर चाय स्तरहीन होती है। मैं चाहता हूं कि भारत दुनिया में चाय उद्योग में ग्लोबल लीडर बने। इसलिए मैंने अब तक 20  प्रकार की चाय बनाई है, वो भी हमारे आयुर्वेद के मिश्रण से, जो लोगों की सेहत के लिए भी फायदेमंद होगी।

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युवाओं की  पसंद बन रही है रोज पैडल टी
शहर में कई रेस्टारेंट और ओपन  टी स्टॉलों पर युवाओं को लुभाने के लिए फ्लेवर वाली चाय की वैरायटी पेश की जा रही है। अभी शहर में करीब 20 अधिक फ्लेवर की चाय बिक रही है। चाय विक्रेता अजय सिंह ने बताया कि अभी उनकी टी स्टाल में मसाला चाय, तंदूरी चाय, मिंट चाय, चॉकलेट चाय, मम्मी के हाथ वाली चाय, मर्दों वाली चाय, प्यार-मोहब्बत वाली चाय, उधार वाली चाय आदि मिलती है। चाय पीने से पहले इन नामों को सुनकर  लोग हंसते थे, इसके बाद चाय के बारे में पूछते थे। मैं उनको बताता था कि  यह कुछ अनूठे फ्लेवर हैं, जो लोगों में दिलचस्पी जगाते हैं। चाय की इन सभी वैराइटी में कुछ खास मसाले भी डाले जाते हैं। युवाओं में प्यार-मोहब्बत वाली चाय सबसे ज्यादा पसंद है।  प्यार-मोहब्बत वाली चाय में आधा दूध, आधा पानी, इलायची फ्लेवर, रोज पैडल (पंखुड़ियां) मिलाकर चाय सर्व की जाती है। यह लड़के-लड़कियों को दी जाती है। इसे बेहद पसंद किया जा रहा है। 

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