जूड़ो में भी कम नहीं है हमारी बेटियां, अंतरराष्ट्रीय लेवल पर नाम चमकाया

दूध और अंकुरित अनाज तक उपलब्ध नहीं करवा पाएं हैं हमारे जनप्रतिनिधि

जूड़ो में भी कम नहीं है हमारी बेटियां, अंतरराष्ट्रीय लेवल पर नाम चमकाया

मल्टीपरपज स्कूल में खेल संकुल प्रारम्भ हुआ है जहां जूड़ो खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। मगर अफसोस की बात तो ये हैं कि शहर का नाम रोशन करने के लिए जी-भरकर पसीना बहाने वाली इन बेटियों को प्रशिक्षण के लिए कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं करवाई जा रही है।

कोटा। हमने यहां के जनप्रतिनिधियों से जूड़ो खेलने वाली बेटियों के प्रैक्टिस करने के लिए एक हॉल और उपकरण की मांग की लेकिन आज तक वो भी उपलब्ध नहीं हो पाए हैं। इनको तो छोड़ो डाइट के लिए अंकुरित अनाज तक की व्यवस्था यहां के जनप्रतिनिधि नहीं करवा पाएं है। ये कहना है उन लोगों का जो हमारे शहर की उन जूड़ो खिलाड़ियों को प्रशिक्षण या अन्य सुविधाएं दे रहे हैं जिन्होंने इस खेल में ना केवल हमारे शहर का बल्कि देश का भी नाम अन्तरराष्टÑीय स्तर पर चमकाया है। कोटा की बेटियां साल 1988 के आस पास से ही ये खेल खेल रही है और इस खेल में वे लड़कों से काफी आगे भी रही हैं। कोटा की लगभग 1000 से अधिक लड़कियां इस खेल में अपना पसीना बहा चुकी है। इनमें से 100 से अधिक ने राष्टÑीय स्तर, 250 से अधिक ने राज्य स्तरीय पर आयोजित हुई प्रतियोगिताओं में भाग लिया है। जबकि शहर की एक लड़की मीनाक्षी गर्ग ने कुछ वर्षों पूर्व रूस में आयोजित प्रतियोगिता में देश का प्रतिनिधित्व करते हुए कांस्य पदक हांसिल किया था। 

कोटा में जब इस खेल की शुरूआत हुई थी या लड़कियों का रूझान इस ओर गया ही था तब महावीर नगर प्रथम में स्थित एक व्यायामशाला में रवि गुप्ता जूड़ो का अभ्यास करवाते थे, उसके बाद उन्होंने इसी क्षेत्र की एक सरकारी स्कूल में लड़कियों को जूड़ो का प्रशिक्षण देना प्रारम्भ किया। फिलहाल कोटा में मंगलेश्वरी व्यायामशाला, हरदौल व्यायामशाला और नयागांव स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय सहित कुछ अन्य स्थानों पर कोटा की लड़कियां जूड़ो का प्रशिक्षण ले रही हैं। 

जबकि हाल ही में मल्टीपरपज स्कूल में खेल संकुल प्रारम्भ हुआ है जहां जूड़ो खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। मगर अफसोस की बात तो ये हैं कि शहर का नाम रोशन करने के लिए जी-भरकर पसीना बहाने वाली इन बेटियों को प्रशिक्षण के लिए कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं करवाई जा रही है। प्रशिक्षण के लिए जिन सुविधाओं की आवश्यकता होती है उनकी या तो ये खिलाड़ी व्यक्गित रूप से व्यवस्था कर रही हैं या जिन स्थानों पर ये अभ्यास करती हैं उन व्यायाशाला के पदाधिकारियों की ओर से भामाशाहों के माध्यम से व्यवस्था करवाई जा रही हैं।  हां, ये जरुर है कि चयन के लिए ट्रायल के दौरान जरुर कुछ सरकारी सुविधाएं इनको मिल जाती है। कोटा की रेखा राठौड़, मीना सुमन, मोनू गौचर, सलोनी अग्रवाल, इशिता राठौड़, लक्ष्मी नागर, श्रुति उन्याल तथा तान्या राठौड़ सहित कई ऐसी महिला खिलाड़ी है जो जूड़ो में राष्टÑीय स्तर पर प्रदर्शन कर चुकी हैं और मेडल जीत चुकी है। इनके अलावा अनिता गुर्जर, मीनाक्षी गुर्जर, उकता सिंह, शिवानी गौचर तथा दिव्या गौचर सहित कई ऐसी खिलाड़ी है जो राज्य स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी हैं।

 कोटा की इन बेटियों को जूड़ो का अभ्यास करवाने वाले बताते हैं कि ये लड़कियां लड़कों से काफी ज्यादा अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। पै्रक्टिस के दौरान इन लड़कियों की एकाग्रता वाकई देखने लायक होती है। इनका ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर होता है। इनके माता-पिता सिर्फ हमारे ही भरोसे अपनी बच्चियों को छोड़ जाते हैं। अगर इस बेटियों को पर्याप्त सरकारी सुविधा और संरक्षण मिले तो ये देश का नाम अन्तरराट्रीय पर सुनहरे अक्षरों में लिखवाने की ताकत रखती है। शुरूआती दौर में लड़कियो का रूझान इस खेल की ओर कुछ कम था लेकिन जैसे-जैसे इस खेल में लड़कियों ने नाम कमाना शुरू किया वैसे वैसे कई लड़कियां इस खेल से जुड़ती गई। 

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लगभग 10-12 सालों से जूड़ो का अभ्यास कर रही हंू। मुझे मम्मी का पूरा सपोर्ट मिलता है। पहले 5-6 घंटे लेकिन अभी 3-4 घंटे की प्रैक्टिस कर पा रही हूं। नेशनल में एक बार गोल्ड और 3 या 4 बार कांस्य पदक हांसिल किया है। प्रैक्टिस का पढ़ाई पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। तालमेल बैैठाकर चलती हूं। 
- सलोनी अग्रवाल, जूड़ो खिलाड़ी। 

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साल 2020 से ही जूड़ो का अभ्यास कर रही हंू। गांव में ये खेल कोई नहीं खेलता था, जब कोटा आए तो कई खिलाड़ियों को खेलते देखा तो मेरा भी इस खेल की ओर रूझान बढ़ा। करीब 3 घंटे रोजाना की प्रैक्टिस है। घरवाले पूरा सहयोग करते हैं। अभी हाल ही में गंगानगर में स्टेट खेलकर आई हंू। 
- मीनाक्षी गुर्जर, जूड़ो खिलाड़ी। 

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कोटा की लड़कियों ने जूड़ो में खूब नाम कमाया है। इनको सरकार की ओर से कोई सुविधा नहीं मिल रही है। यहां की बेटियों को इनके परिजनों का भी पूरा सपोर्ट मिल रहा है। इस खेल में नाम कमाने वाली कई लड़कियां आज सरकारी शारीरिक शिक्षक बनकर लड़कियों का प्रशिक्षण दे रही हैं। इस खेल में भविष्य उज्जवल हैं।
- सौरभ भारत, शारीरिक शिक्षक।

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