बैराज के सामने बिराजे लाल पत्थर के गढ़ गणेश
मंदिर की दीवार पर उल्टा-सीधा साखियां की अनूठी है परंपरा
प्रबंधन और राव माधोसिंह म्यूजियम ट्रस्ट ही करते हैं मंदिर की देखरेख।
कोटा। शहर के चंबल बैराज के सामने स्थित गढ़ में गढ़ गणेश बिराजमान है। यह मंदिर करीब तीन साल पुराना है। इस मंदिर में आस्था का द्वीप रियासतकालीन से प्रज्ज्वलित हो रहा है। यह मंदिर केवल पूजा का स्थान नहीं, बल्कि विश्वास और परंपरा की अनूठी तस्वीर है। इस मंदिर की दीवारों पर बने सैकड़ों उल्टा-सीधा साखिया (स्वास्तिक) न केवल श्रद्धालुओं आस्था को बयां करते हैं, बल्कि उनकी पूरी हुई मनोकामनाओं के गवाह भी हैं। गढ़ गणेश मंदिर की पहचान कोटा के धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास से जुड़ी हुई है।
डूब से लेकर गढ़ में बिठाने का इतिहास
राजाचार्य एवं क्यूरेटर आशुतोष दाधीच ने बताया कि गढ़ गणेश मंदिर का इतिहास कोटा के उतार-चढ़ाव और परिवर्तनों का साक्षी रहा है। 1960 में जब कोटा बैराज बना तब कई स्थानों के प्राचीन मंदिर डूब क्षेत्र में आ गए। उस समय गढ़ के घाट के नीचे स्थित जनाना घाट के पास स्थापित गढ़ गणेश मंदिर सुरक्षित स्थान पर ले जाना पड़ा। केवल गढ़ गणेश ही नहीं, बल्कि कई अन्य मंदिर भी उस समय गढ़ की दीवारों के भीतर स्थानांतरित किए गए। पहले यह मूर्ति गणगौरी दरवाजे के बाहर विराजमान थी। परंतु बैराज निर्माण के बाद इसे गढ़ में स्थापित किया गया। इस कारण से भी इन्हें गढ़ गणेश के नाम से भी जाना जाता है।
लाल पत्थर से बनीअनूठी प्रतिमा
गढ़ गणेश मंदिर में लाल पत्थर से निर्मित यह मूर्ति लगभग साढ़े तीन से चार फीट ऊंची है। चांदी और सोने के वर्क से सजे गढ़ गणेश प्रतिमा मनोहारी दृश्य प्रस्तुत करती है। भक्त घंटों तक इस अद्भुत रूप का दर्शन करते हैं और अपने जीवन की खुशहाली की प्रार्थना करते हैं।
ट्रस्ट की देखरेख और पुजारी परंपरा
राजाचार्य एवं क्यूरेटर आशुतोष दाधीच ने बताया कि गढ़ गणेश मंदिर का प्रबंधन राव माधोसिंह म्यूजियम ट्रस्ट के हाथों में है। कोटा के राव माधोसिंह ने ही इस ट्रस्ट की स्थापना की थी, ताकि मंदिर और संग्रहालयों की देखरेख व्यवस्थित तरीके से हो सके। मंदिर का रखरखाव और धार्मिक गतिविधियां ट्रस्ट की ओर से ही संचालित की जाती हैं। वर्तमान में पं. सत्यनारायण शर्मा नियमित पूजा-अर्चना करते हैं और श्रद्धालुओं की सेवा में लगे हुए हैं।
गणेश चतुर्थी पर होती है विशेष सजावट
मुख्य पुजारी पं. सत्यनारायण शर्मा ने बताया कि गणेश चतुर्थी के दिन गढ़ गणेश मंदिर की विशेष सजावट की जाती है। सुबह 5 बजे से ही श्रद्धालुओं की भीड़ शुरू हो जाती है। विशेष शृंगार के बाद गढ़ गणेश की एक अलग ही आभा दिखती है। चांदी और सोने के वर्क से सजी मूर्ति के दर्शन के लिए श्रद्धालु लंबी कतारों में खड़े रहते हैं। यहां न केवल कोटा शहर से बल्कि आसपास के क्षेत्रों से भी भक्तजन पहुंचते हैं। कोटा आने वाले पर्यटकों के लिए यह मंदिर एक खास आकर्षण है। गढ़ का वातावरण, मंदिर की प्राचीन आस्था की परंपराएं इसे और आकर्षक बना देती है।
आस्था की अनूठी परंपरा : उल्टा-सीधा साखिया
पुजारी सत्यनारायण शर्मा ने बताया कि गढ़ गणेश मंदिर की अनूठी परंपरा है दीवार पर उल्टा और सीधा साखिया (स्वास्तिक) बनाने की। श्रद्धालुओं के अनुसार यदि किसी युवक या युवती का विवाह नहीं हो रहा हो या किसी तरह का विघ्न आ रहा हो तो श्रद्धालु कोटा के बैराज मंदिर में आकर उल्टा साखिया बनाकर अपनी मनोकामना मांगते है। श्रद्धालु बुधवार को गढ़ गणेश मंदिर की दीवार पर उल्टा साखिया बनाते हैं तथा मनोकामना पूरी होने के बाद जीवनसंगिनी के साथ पुन: मंदिर आकर सीधा साखिया बनाते हैं। इस तर्ज पर मंदिर की दीवार पर बने सैकड़ों साखिया (स्वास्तिक) निशान आस्था और विश्वास की कहानियां बयां करते है। पुजारी पं. सत्यनारायण शर्मा बताते हैं कि यहां सात बुधवार आने की परंपरा है। श्रद्धालु लगातार सात बुधवार आकर गणेश जी से अपनी मनोकामना मांगते हैं।
कंकरों में बसा गणपति स्वरूप
गढ़ गणेश मंदिर से जुड़ी एक और अनूठी परंपरा है पांच छोटे कंकर घर ले जाने की, श्रद्धालु इन्हें गणपति स्वरूप मानकर इनकी पूजा करते हैं। जब उनकी इच्छा या अपने धार्मिक कार्य पूरे हो जाते है तो वे उन्हीं कंकर रूपी गणेश को वापस मंदिर में लेकर आते हैं। यह परंपरा प्राचीनकाल से चली आ रही है।
प्राचीन मंदिर में जाने के लिए नहीं लगा कोई बोर्ड
इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि इस मंदिर में जाने के लिए बैराज के सामने सीढ़यां लगी हुई यह करीब 35 सीढ़ियां है। यहां आस पास साफ-सफाई नहीं होने तथा साइन बोर्ड नहीं लगा होने से यहां आने वाले श्रद्धालुओं को काफी परेशानी उठानी पड़ रही है। यह मंदिर प्राचीन होने के बावजूद भी अपनी लोकप्रियता खो रहा है। चम्बल बैराज तक जाने के लिए तो साफ-सफाई अच्छी हो रखी है लेकिन चंबल बैराज व मंदिर की सीढ़ियों के बीच जंगली झाड़ियां उगी हुई है। वहीं इस गढ़ गणेश मंदिर के लिए कोई बोर्ड भी नहीं है। स्थानीय लोगों के अलावा बाहरी श्रद्धालु यहां तक नहीं आ पाते है। यह जगह सुनसान होने के कारण असामाजिक तत्वों का जमावड़ा भी रहता है। राजाचार्य एवं क्यूरेटर आशुतोष दाधीच ने बताया कि केडीए के सहयोग के बिना यह संभव नहीं है। यहां आने वाले श्रद्धालु को बैराज तक ही साफ-सफाई नजर आती है। आगे लगे बैरिकेड के बाद मंदिर की सीढ़ियों तक जंगली झाड़ियां उगी हुई है। यहां आने श्रद्धालु भी इस व्यवस्था से नाराजगी जता चुके है।

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