इंटरनेट के दौर में अस्तित्व बचाने को खड़ा है अन्तर्देशीय पत्र

बीते 5 सालों में ही घट चुकी है डेढ़ से दो गुना बिक्री

इंटरनेट के दौर में अस्तित्व बचाने को खड़ा है अन्तर्देशीय पत्र

अन्तर्देशीय पत्रों, पोस्टकार्ड और लिफाफों का स्थान ई-मेल और इंटरनेट के अन्य माध्यमों ने ले लिया पत्राचार के माध्यम इतिहास बनने के कगार पर है।

कोटा। आदरणीय मां-पिताजी को सादर चरण स्पर्श, आशा करता हंू कि आप सब घर पर सकुशल होेंगे। कुछ इसी तरह की सम्मानजनक और दिल को छू लेने वाली पंक्तियां लिखी जाती थी सालों पहले अंतदेर्शीय पत्र और पोस्टकार्ड में। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता तो इन अन्तर्देशीय पत्रों, पोस्टकार्ड और लिफाफों का स्थान ई-मेल और इंटरनेट के अन्य माध्यमों ने ले लिया और आज ये पारंपरिक पत्राचार के माध्यम लगभग इतिहास बनने के कगार है। भले ही कितना ही इंटरनेट का युग आ गया हो और हम आॅनलाइन हर कार्य करने लगे हैं लेकिन जो प्यार और सम्मान पोस्टकार्ड और अन्तर्देशीय पत्रों में हुआ करती था वो आज कही देखने तक को नहीं मिलता था।  कोटा शहर की ही बात करें तो बीते 5 सालों में ही इन अंतरदेशी पत्रों, पोस्टकार्ड और लिफाफों के मासिक बिक्री में डेढ़ से दो गुना तक कमी आ चुकी है। वर्तमान समय में कोटा शहर में 23 पोस्ट आॅफिस हैं। इन सभी पोस्ट आॅफिस पर प्रतिमाह लगभग मात्र 1 हजार अंतरदेशी पत्र बिकते हैं। इस हिसाब से देखे तो हर एक पोस्ट आॅफिस पर रोजना औसतन मात्र दो अंतरदेशी पत्र बिकते हैं। यानि लगभग 15 लाख की आबादी वाले शहर में संचालित 23 पोस्ट आॅफिस में से प्रत्येक पर औसतन मात्र 2 अंतदेर्शीय पत्र रोज खपते हैं। इसी प्रकार इन सभी पोस्ट आॅफिस पर प्रतिमाह लगभग 4 से 5 हजार पोस्टकार्ड और 6 से 7 हजार लिफाफें बिकते हैं। जबकि 5 साल पहले ये संख्या लगभग दोगुना हुआ करती थी। 

ऐसा होता हैं अंतरदेशी पत्र 
अंतरदेशी पत्र उपयुक्त रूप से मोड़ कर फोल्डर और गोंद से चिपकाकर इस्तेमाल किया जाने वाला एक पत्र है जो डाकखाने से खरीदा जा सकता है। यह उचित मूल्य पर उपलब्ध है। इसका मूल्य कम ही होता है और आम जनता के लिए सस्ता व सुलभ माध्यम है। इसके भीतर कोई भी कागज या सामान रखने की अनुमति नहीं दी जाती है। यह व्यापक प्रचार और प्रसार में है और यह मुफ़्त ही हवाई संचरण द्वारा देश के भीतर ही प्रयोग किया जा सकता है। यह प्रति कार्ड 2.50 रुपये पर उपलब्ध रहता है। निजी तौर पर मुद्रित पत्र कार्ड का वजन 4 ग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए। पते के शीर्ष बाएं हाथ कोने में शब्द अंतरदेशी  पत्र कार्ड लिखा होना चाहिए और पत्र कार्ड की नाप निम्नलिखित सीमा के भीतर होना चाहिए।

यह है पोस्टकार्ड का इतिहास
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, पोस्टकार्ड ने सबसे पहले आॅस्ट्रिया में बाजार में प्रवेश किया, हालांकि इसकी परिकल्पना 1869 में उत्तरी जर्मनी में जर्मन डाक अधिकारी डॉ. हेनरिक वॉन स्टीफन ने की थी। यह एक दशक का बेहतर हिस्सा था जब भारतीय उपमहाद्वीप में इस उपकरण की शुरूआत हुई थी। जुलाई 1879 में भारत में केवल एक चौथाई आना के लिए पोस्टकार्ड की शुरूआत हुई। मीडियम-लाइट बफ या स्ट्रॉ कार्ड पर मुद्रित, ईस्ट इंडिया पोस्ट कार्ड को पहले उत्पाद पर अंकित किया गया था, साथ ही ऊपरी दाएं कोने पर रानी विक्टोरिया के सिर के साथ। वैश्विक स्तर पर, एफिल टॉवर जैसे लोकप्रिय स्मारकों को 1889 में पोस्टकार्ड पर प्रदर्शित करना शुरू किया गया था। 1889 में पेश किया गया एक हेलीगोलैंड कार्ड, कई रंगों में मुद्रित होने वाला पहला पोस्टकार्ड माना जाता है। 

भारत में पोस्टकार्ड का इतिहास
भारत में ब्रिटिश शासन के साथ, 1900 से 1930 के दशक में पोस्टकार्ड को कॉलोनियों में रहने वाले यूरोपीय लोगों के लिए संचार के साधन के रूप में देखा गया ताकि वे अपने परिवारों के साथ घर वापस आ सकें। रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग छह बिलियन पोस्टकार्ड 1902 और 1910 के बीच ब्रिटिश प्रणाली के माध्यम से कूरियर किए गए थे। जैसे-जैसे साल बीतते गए, बैंगलोर-मद्रास बेल्ट में अधिक फोटोग्राफर और स्टूडियो ने भारतीय बाजार को बढ़ावा देने के लिए पोस्टकार्ड पर दृश्य बनाना शुरू कर दिया। जातीयता, लिंग, जाति और व्यवसाय केंद्र बिंदु थे जब भारतीय मूल निवासियों के चित्र पोस्टकार्ड पर बनाए गए थे। दुर्भाग्य से, देश में एसटीडी (सब्सक्राइबर ट्रंक डायलिंग) और पीसीओ (पब्लिक कॉल आॅफिस) की शुरूआत ने 1990 के दशक में कार्ड के विकास को रोक दिया। हालांकि, 1993 में, इंडिया पोस्ट ने साप्ताहिक प्रश्नोत्तरी के साथ एक लोकप्रिय शो सुरभि के बाद प्रतियोगिता पोस्टकार्ड का निर्माण किया।  

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इनका कहना
पोस्टकार्ड और अंतरदेशी  पत्र संदेश के साथ-साथ भावनाओं को भी अपने आप में समाहित किए हुए रहते हैं। आज भी लोग पुराने पत्रों को निकाल-निकाल कर पढ़कर भाव विभोर होते रहते हैं। आमजन फिर से पत्र लेखन की ओर लौटे उसके लिए डाक विभाग विद्यार्थियों के बीच प्रतियोगिताएं करवाता रहता है। 
-नरेन्द्र अग्रवाल, मार्केटिंग एग्जेक्यूटिव, कोटा मंडल। 

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पोस्टकार्ड और अन्तर्देशीय पत्र तो गुजरे जमाने की बात हो चुकी हैं। वो जमाना और था जब लेटर का इंतजार करते-करते दोपहर से शाम हो जाती थी और जब हाथ में पत्र आता तो मैं खोलंूगा-मैं खोलूंगा की होड़ मचा करती थी। चाहे कितना ही जमाना बदल जाए लेकिन जो प्यार उन पत्राचार से झलकता था वो अब नहीं मिल सकता हैं। 
-रामगोपाल शर्मा। 

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आने वाली पीढ़ी पत्र लिखना तो दूर की बात शायद अन्तर्देशीय पत्रों और पोस्टकार्ड तक के नाम भी ना जाने। आजकल तो शोक संदेश तक मोबाइल पर भेज दिए जाते हैं। आज के मोबाइल के युग में बच्चे बात ही हाय-हैलों से करते हैं। पैर छूना तो भूल ही चुके हैं। 
-रामपाल यादव। 

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