जानिए राजकाज में क्या है खास?

जानिए राजकाज में क्या है खास?

सूबे में इन दिनों हाथ वाले भाई लोग 19 और 27 के फेर में फंसे हुए हैं। दोनों खेमों के नेताओं के 11 महीनों से समझ में नहीं आ रहा कि आखिर इस फेर के चक्रव्यूह का तोड़ क्या है। दिल्ली वाले नेता भी इसके चलते चुप रहने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं।

एल एल शर्मा
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19 और 27 का फेर

सूबे में इन दिनों हाथ वाले भाई लोग 19 और 27 के फेर में फंसे हुए हैं। दोनों खेमों के नेताओं के 11 महीनों से समझ में नहीं आ रहा कि आखिर इस फेर के चक्रव्यूह का तोड़ क्या है। दिल्ली वाले नेता भी इसके चलते चुप रहने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं। अब देखो ना जोधपुर वाले अशोक जी के खिलाफ बगावत करने वाले 19 हैं, तो समर्थित पक्ष वालों की संख्या 27 है, बाकी 81 तो वैसे ही खुले में राज का गुणगान करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। शेष 71 हैं, जो खुद ही 40 और 31 के फेर में ऐसे लिपटे हुए हैं कि दूसरों के बारे में सोचने की फुर्सत तक नहीं है। राज का काज करने वाले लंच केबिनों में बतियाते हैं कि जब 19 ही मूंछों पर ताव दे रहे हैं, तो 27 तो सामने वालों को कहीं का भी नहीं छोड़ेंगे। अब इतना ही इशारा काफी है, चूंकि समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी हैं।

खेल नरम-गरम का
भगवा वाले दल में नरम और गरम का खेल के चक्कर में सूबे के भाईसाहबों की नींद उड़ी हुई है। उड़े भी क्यों नहीं, बेचारों के समझ में नहीं आ रहा है कि नरम और गरम दल के इस खेल में वे किस पाले के खिलाड़ियों के लिए ताली बजाए। भाईसाहबों में खुसरफुसर है कि जब से नमोजी ने हाथ वाले कुछ भाइयों की तारीफ करना शुरू किया है, उनका सबका साथ, सबका विश्वास नारा एक धड़े को नापसंद है। भाईसाहबों का तर्क है कि जब अटल जी नरम पड़े, तो आडवाणी ही गरम हुए और आडवाणी जी नरम पड़े तो मोदी जी गरम हुए बिना नहीं रह सके। अब मोदी जी नरम पड़ते दिखाई दे रहे हैं, तो योगी जी को गरम होना लाजमी है। योगी धड़े वाले भाईसाहब सिर्फ एक धर्म की बात करने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं और दिल्ली में इस विचारधारा का श्रीगणेश भी कर दिया है।

लाइलाज छपास रोग
सूबे में एक बार फिर छपास रोग को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं। चर्चा करने वाले और कोई नहीं, बल्कि हाथ वाली पार्टी के वर्कर हैं। अपने नेताओं के लगे पब्लिसिटी नाम के इस रोग को लेकर वर्कर्स काफी परेशान हैं। बेचारे वे अपने नेताओं को समझाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे, लेकिन नेता हैं कि मानते ही नहीं। वर्कर्स का सालों लंबा अनुभव है कि पब्लिक पर भरोसा नहीं कर फोटो छपवाने वाले कभी बड़ा नेता नहीं बन सकते। कोरोना में ठाले बैठे वर्कर्स ने छपास रोग वाले नेताओं की लिस्ट तो बना ली, लेकिन बेचारों के सामने नाम बोलने से पहले इधर-उधर देख कर पीछे हटने की मजबूरी है।

एक जुमला यह भी
सूबे में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं, बल्कि ओवर लेपिंग एमएलएज की है। इनकी संख्या भी सात है। जुमला है कि ओवर लेपिंग करने वाले इन एमएलएज की हालत काकड़ पर खड़े जिनावर की तरह है, जो इधर भी मुड़ सकते हैं और उधर भी। अब राज से बगावत करने वाले नेताओं को भी समझ में आ गया है कि 15 को साथ लेकर नंबर वन की कुर्सी पाना मुश्किल ही नहीं, असंभव भी है। अब दिल्ली वालों की आड़ में बीच का रास्ता निकालने में अपनी भलाई समझ रहे हैं। इंदिरा गांधी भवन में बने हाथ वाले भाई लोगों के ठिकाने पर चर्चा है कि सत्ता तो जोधपुर वाले भाईसाहब की संभालेंगे और संगठन वापस पुराने हाथों में सौंपे जाने का फार्मूला अपनाए जाने की तैयारी अंतिम चरण में है। लेकिन यह भी अशोक जी भाईसाहब की मर्जी पर है।
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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