‘डॉलर से आजादी’ की मुहिम में ब्रिक्स में शामिल देश एक्टिव, भारत ने थाम रखी है कूटनीतिक चुप्पी
रियो शिखर सम्मेलन में डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए पेश की गई थी नई योजना
डॉलर से आजादी की मुहिम को लेकर ब्रिक्स में शामिल देश ऐक्टिव नजर आ रहे हैं, लेकिन भारत ने इम मामले में फिलहाल चुप्पी साध रखी है।
नई दिल्ली। डॉलर से आजादी की मुहिम को लेकर ब्रिक्स में शामिल देश ऐक्टिव नजर आ रहे हैं, लेकिन भारत ने इम मामले में फिलहाल चुप्पी साध रखी है। हाल ही में, ब्रिक्स देशों के नेता रियो डी जनेरियो में मिले। इस बैठक में हाथ मिलाना, घोषणाएं करना और वैश्विक प्रशासन में सुधार की बातें हुईं। लेकिन इसके पीछे एक गंभीर सवाल ये था कि वैश्विक वित्तीय प्रणाली को कौन चलाता है? और दुनिया कब तक अमेरिकी डॉलर पर निर्भर रह सकती है? ब्रिक्स, जिसमें ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं, दो दशकों से पश्चिमी देशों के दबदबे के खिलाफ एक ताकत के रूप में उभरा है। रियो शिखर सम्मेलन में डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए एक नई योजना पेश की गई। इसके तहत ब्रिक्स पे के लिए एक ढांचा पेश किया गया, यह एक ब्लॉकचेन पर आधारित डिजिटल भुगतान प्रणाली है। नेताओं ने ब्रिक्स देशों के बीच व्यापार के लिए एक मंच बनाने की बात भी कही। रूस और ब्राजील ने डॉलर के प्रभुत्व को कम करने और मौद्रिक स्वायत्तता की बात की। वहीं, भारत ने सावधानी बरतते हुए कहा कि वह अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहा है। भारत ने ब्रिक्स के सिद्धांतों का समर्थन किया, लेकिन हर बात में नहीं। भारत वैकल्पिक वित्तीय प्रणालियों का समर्थन करता है जो अधिक समावेशी और सुरक्षित हों। भारत का कहना है कि वह डॉलर का विरोधी नहीं है, बल्कि डॉलर के हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का विरोधी है। भारत अपनी अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखने के लिए कई कदम उठा रहा है, ताकि उसे अमेरिका से आने वाले झटकों से बचाया जा सके। पिछले कुछ सालों में, इस बात की चिंता बढ़ गई है कि वित्तीय प्रणाली को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। यूक्रेन पर आक्रमण के बाद रूस की संपत्ति को जब्त कर लिया गया। ईरान और वेनेजुएला पर प्रतिबंध लगाए गए। चीन को भी डर है कि उसे वित्तीय प्रणाली से अलग किया जा सकता है। इन घटनाओं ने देशों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि वे कितने सुरक्षित हैं। भारत में भी यह सवाल उठ रहा है कि अगर भविष्य में उसे डॉलर बाजारों, भुगतान प्रणालियों या क्रेडिट रेटिंग के माध्यम से दबाव डाला जाए तो वह क्या करेगा?
आरबीआई का एक्शन क्या?
भारत इसका जवाब डॉलर प्रणाली को खत्म करने में नहीं, बल्कि इसके बराबर विश्वसनीय विकल्प बनाने में देखता है। 2022 से, भारतीय रिजर्व बैंक ने 30 से अधिक देशों के साथ विशेष रुपये वोस्ट्रो खाते खोले हैं। ये खाते विदेशी बैंकों को भारतीय भागीदारों के साथ व्यापार करने के लिए रुपए रखने की अनुमति देते हैं। रूस, श्रीलंका और मॉरीशस जैसे देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए हैं।
यह व्यवस्था पूरी तरह से आसान नहीं है, लेकिन इसने भारत को एक मॉडल स्थापित करने में मदद की है।
‘ब्रिक्स पे’ पर हुई चर्चा
ब्रिक्स देशों के नेताओं ने रियो डी जनेरियो में मुलाकात की ताकि वैश्विक वित्तीय प्रणाली में डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती दी जा सके। उन्होंने ब्रिक्स पे नामक एक नई डिजिटल भुगतान प्रणाली पर चर्चा की और स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को बढ़ावा देने की बात कही। रूस और ब्राजील ने डॉलर के प्रभुत्व को कम करने की वकालत की, जबकि भारत ने सावधानी बरतते हुए कहा कि वह अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहा है।
भारत का मानना है कि डॉलर का इस्तेमाल हथियार के तौर पर नहीं किया जाना चाहिए और वह अपनी अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखने के लिए कई कदम उठा रहा है।
भारत के पास क्या प्लानिंग है?
भारत डॉलर प्रणाली को खत्म करने के बजाय समानांतर में विश्वसनीय विकल्प बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। भारत-यूएई कॉरिडोर में रुपए-दिरहम में भुगतान की व्यवस्था को औपचारिक रूप दिया गया है, और यूपीआई और आईपीपी के बीच वास्तविक समय भुगतान प्रणाली को जोड़ा गया है। भारत डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को मौद्रिक लचीलापन के उपकरण के रूप में बढ़ावा दे रहा है। और यूपीआई को अन्य देशों में निर्यात कर रहा है।

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