तेजस एमके 1ए में स्वदेशी इंजन कावेरी का होगा इस्तेमाल, अमेरिकी इंजन के मुकाबले हिमालय क्षेत्र में कहीं बेहतर
रणनीतिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा फैसला माना जा रहा है
लड़ाकू विमान तेजस एमके 1ए में अमेरिकी 404 इंजन की जगह अब देसी कावेरी इंजन लगाने की संभावना पर गंभीरता से विचार कर रही है।
नई दिल्ली। भारत ने अपने स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान तेजस एमके 1ए में अमेरिकी इंजन एफ 404 की जगह घरेलू कावेरी इंजन लगाने पर विचार कर रहा है। भारतीय रक्षा विशेषज्ञों की धारणा है कि अत्यधिक ऊंचाई वाले युद्ध क्षेत्रों में कावेरी इंजन कहीं ज्यादा उपयुक्त है। अमेरिकी इंजन एफ 404 हिमालय के रण क्षेत्र में उतनी दक्षता से विमान को गति नहीं दे सकता। तकनीक के क्षेत्र में यह भारत की बड़ी कामयाबी है। भारत लगातार अपनी डिफेंस इंडस्ट्री को अत्याधुनिक बनाने के लिए जोड़ तोड़ मेहनत कर रहा है। लेकिन फाइटर जेट्स के इंजन निर्माण में भारत अभी तक बड़ी कामयाबी हासिल नहीं कर पाया है। लेकिन भारत अब स्वदेशी डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में एक नया कमाल करने की कोशिश कर रहा है। भारतीय वायुसेना ने संकेत दिया है कि वह अपने स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान तेजस एमके 1ए में अमेरिकी 404 इंजन की जगह अब देसी कावेरी इंजन लगाने की संभावना पर गंभीरता से विचार कर रही है। यह कदम भारत की रणनीतिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा फैसला माना जा रहा है।
भारतीय वायुसेना के वरिष्ठ अधिकारियों का मानना है कि तेजस फाइटर जेट इंडियन एयरफोर्स के बेड़े में कम से कम 40 सालों से ज्यादा वक्त तक रहने वाला है, इसलिए तेजस फाइटर जेट में भारत का स्वदेशी इंजन होना चाहिए। भारतीय एयरफोर्स के बेड़े में 200 से ज्यादा तेजस फाइटर जेट शामिल होने वाले हैं और उनके लिए कम से कम 700 से ज्यादा इंजनों की जरूरत होगी। अगर भारत घरेलू इंजन पर निर्भरता हासिल कर लेता है तो किसी और देश की तरफ मुंह ताकने की जरूरत ही महसूस नहीं होगी।
डीआरडीओ की एजेंसी जीटीआरई ने किया विकसित
कावेरी इंजन को भारत में डीआरडीओ की एजेंसी जीटीआरई ने डेवलप किया था। लेकिन मूल इंजन को काफी सारी टेक्नोलॉजिकल समस्याओं से जूझना पड़ा। जिसके बाद अब इस इंजन को फिर से रिवाइव करने की कोशिशें तेज हो गई हैं। नई रिपोर्ट्स के मुताबिक, अब जीटीआरई एक ऐसा हल्का और संशोधित कावेरी इंजन बना रहा है जिसे तेजस जैसे हल्के लड़ाकू विमानों में लगाया जा सके। इस इंजन का मकसद सिर्फ स्वदेशी विकल्प देना नहीं, बल्कि भारत को इंजन तकनीक में आत्मनिर्भर बनाना भी है। हालांकि जीटीआरई जिस प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है वह काफी मुश्किल है। इंजन बनाना अत्यंत मुश्किल माना जाता है और ये कितना मुश्किल काम है, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि चीन भी लड़ाकू विमानों के इंजन के मामले में आत्मनिर्भर नहीं बन पाया है। भारत में जीटीआरई एक ज्यादा शक्तिशाली इंजन बनाने की कोशिश कर रहा है, जिसे फिलहाल कावेरी 2.0 नाम दिया गया है। भारत सरकार का लक्ष्य साल 2047 तक इंडियन एयरफोर्स के लड़ाकू बेड़े की संख्या बढ़ाकर 60 तक ले जाना है और इस सपने को पूरा करने के लिए कावेरी 2.0 का कामयाब होना अत्यंत जरूरी है। फिलहाल तेजस फाइटर जेट में अमेरिक में बनी जीई कंपनी की एफ 404 इंजन का इस्तेमाल किया गया है। जो आफ्टरबर्नर के बिना (शुष्क थ्रस्ट) 54 किलोन्यूटनका थ्रस्ट और आफ्टरबर्नर लगे होने पर (गीला थ्रस्ट) 84 केएन का थ्रस्ट प्रदान करता है।
वायुसेना के बेडे में तेजस फाइटर सबसे महत्वपूर्ण
भारतीय वायुसेना के बेड़े के लिए तेजस फाइटर जेट्स सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बनने वाले हैं। भारत सरकार ने डीआरडीओ को 83 तेजस एमके 1ए की डील दी है, जिनकी डिलीवरी 2024 से शुरू होनी थी। लेकिन तेजस एमके 1ए की धीमी डिलीवरी और महंगे दाम अब इस पूरे प्रोग्राम को धीमा कर रहे हैं। ऐसे में कावेरी इंजन भारतीय वायुसेना के लिए गेमचेंजर बन सकती है। अगर डीआरडीओ आने वाले एक से दो साल में कावेरी इंजन को सफलतापूर्वक तैयार कर देता है, तो यह न सिर्फ तेजस एमके 1ए को पूरी तरह से देशी बना देगा, बल्कि भारत को लड़ाकू इंजन टेक्नोलॉजी में भी एक नई ऊंचाई पर ले जाएगा। डीआरडीओ और फ्रांसीसी कंपनी साफरान के बीच हाइब्रिड इंजन या को-डेवलप्ड कोर इंजन को लेकर बातचीत चल रही है। अगर ये सहयोग कामयाब रहता है, तो कावेरी को अंतरराष्ट्रीय टेक्नोलॉजी का समर्थन भी मिल जाएगा, जिससे इसका इस्तेमाल भविष्य के फिफ्थ जेनरेशन फाइटर प्लेन के रूप में भी हो सकता है।

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