कोपेनहेगन विश्व का सबसे रहने योग्य शहर क्यों
ग्लोबल लिवेबिलिटी इंडेक्स 2025 में
इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट द्वारा जारी ग्लोबल लिवेबिलिटी इंडेक्स 2025 में डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन को दुनिया का सबसे रहने योग्य शहर घोषित किया गया है।
हाल ही में इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट द्वारा जारी ग्लोबल लिवेबिलिटी इंडेक्स 2025 में डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन को दुनिया का सबसे रहने योग्य शहर घोषित किया गया है। इस सूचकांक में स्थिरता, स्वास्थ्य सेवाएं, संस्कृति और पर्यावरण, शिक्षा और आधारभूत संरचना जैसे पांच प्रमुख मानकों केआधार पर 173 शहरों का आंकलन किया गया। कोई भी शहर तभी रहने योग्य बनता है, जब वहां का वातावरण केवल सुविधाजनक ही नहीं, बल्कि नागरिकों के जीवन को समग्र रूप से संतुलित, सुरक्षित और सार्थक बनाने वाला हो। यह संतुलन तभी आता है, जब शासन व्यवस्था, शहरी नियोजन, सामाजिक संरचना और पर्यावरणीय सोच मिलकर एक सुसंगठित प्रणाली तैयार करें। कोपेनहेगन का शीर्ष स्थान प्राप्त करना इसी सुसंगत सोच और निष्पादन का प्रमाण है। यह महज शहर की समृद्धि या सुंदरता का नहीं, बल्कि उसकी संरचनात्मक समझ, नागरिक-हितैषी नीतियों और दीर्घकालिक सामाजिक निवेश का परिणाम है। दरअसल, डेनमार्क में स्थानीय निकायों को अधिकार, वित्तीय संसाधन और निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी गई है। यहां शहरों को ऊपर से योजनाएं नहीं थोपी जातीं, बल्कि वे अपने विशिष्ट भूगोल, जनसंख्या और सामाजिक संदर्भ के अनुसार अपने विकास का खाका खुद बनाते हैं। इसका लाभ यह होता है कि शहरी योजनाएं सैद्धांतिक नहीं, बल्कि स्थानीय जरूरतों के अनुरूप व्यावहारिक होती हैं।
उदाहरण के लिए, कोपेनहेगन का ट्रैफिक मॉडल निजी वाहनों को हतोत्साहित कर सार्वजनिक परिवहन और साइकिलिंग को प्रोत्साहन देता है। यह केवल प्रदूषण या ट्रैफिक की समस्या का समाधान नहीं, बल्कि एक दीर्घकालिक सामाजिक निवेश है, जो नागरिकों के स्वास्थ्य, पर्यावरणीय स्थिरता और सार्वजनिक स्थानों की पुनसंरचना में सहायक है। स्वास्थ्य सेवाएं यहां सार्वभौमिक और राज्य पोषित हैं, जिससे नागरिकों को स्वास्थ्य संबंधी चिंता से मुक्त जीवन जीने का अवसर मिलता है। यह स्वतंत्रता उन्हें सामाजिक योगदान और आर्थिक उत्पादकता में अधिक सक्रिय बनाती है। इसी प्रकार शिक्षा प्रणाली केवल प्रतिस्पर्धा नहीं, बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्व और व्यक्तिगत विकास को महत्व देती है।
जब कोई समाज अपने नागरिकों के प्रारंभिक विकास में ही उन्हें सामाजिक और मानसिक रूप से तैयार करता है, तो वह लंबे समय में अधिक संगठित और आत्मनिर्भर बनता है। कोपेनहेगन की लिवेबिलिटी इसी सोच की पराकाष्ठा है। अब यदि हम भारत के शहरी परिप्रेक्ष्य की बात करें, तो स्थिति जटिल और असमान दिखाई देती है। भारत में शहरीकरण एक प्राकृतिक प्रक्रिया से नहीं, बल्कि विस्थापन, ग्रामीण संकट और अवसरों के केंद्रीकरण से प्रेरित है। भारत के अधिकांश शहर बिना किसी ठोस योजना के विस्तारित हुए हैं।
शहरी नियोजन अब भी औपनिवेशिक अवधारणाओं पर आधारित है, जहां शहर का उद्देश्य प्रशासनिक और आर्थिक केंद्र होना था, न कि नागरिकों के जीवन को सहज बनाना। यही कारण है कि आज भी शहरी भारत बुनियादी सेवाओं जैसे पीने का पानी, स्वच्छता, कचरा निपटान, स्वास्थ्य सेवाएं और सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन की भारी कमी से जूझ रहा है। शहरों की योजना बनाते समय नागरिकों की सहभागिता लगभग न के बराबर होती है। योजनाएं प्राय: टॉप डाउन ढंÞग से बनती हैं, जो स्थानीय जमीनी वास्तविकताओं से कटे होते हैं। भारत में स्मार्ट सिटी योजना इसी दोष से ग्रस्त रही है। यह योजना अच्छी सोच से शुरू हुई थी, लेकिन इसका कार्यान्वयन कई शहरों में केवल कुछ डेमो प्रोजेक्ट तक सिमट गया। इंदौर और सूरत जैसे कुछ उदाहरण प्रशंसनीय हैं, लेकिन अधिकांश शहरों में यह योजना केवल इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में उलझी रही और नागरिकों की जीवनशैली या भागीदारी में कोई सार्थक बदलाव नहीं ला सकी। हकीकत है कि भारत में शहरी नियोजन गंभीर संस्थागत संकट से भी जूझ रहा है।
नगरपालिका या नगर निगम जैसे संस्थानों को न तो पर्याप्त अधिकार दिए गए हैं और न ही संसाधन। अधिकांश नगर निकाय राज्य सरकारों पर निर्भर हैं, जिससे निर्णय लेने में देरी, अस्पष्टता और जवाबदेही की कमी बनी रहती है। भारत में शहरी नीति अब भी मंत्रालयों और नौकरशाही द्वारा नियंत्रित है, न कि स्थानीय नेतृत्व द्वारा। यही कारण है कि योजनाएं कागजों पर अच्छी दिखती हैं, लेकिन जमीन पर उनका प्रभाव सीमित रहता है। समझना होगा कि शहरों की लिवेबिलिटी केवल तकनीक या भवनों से नहीं आती, बल्कि नागरिकों के बीच विश्वास, सुरक्षा और सहभागिता की भावना से आती है। भारत को अपने शहरों को कोपेनहेगन जैसा बनाना है, तो सबसे पहले उसे अपने शहरी ढ़ांचे का लोकतांत्रीकरण करना होगा।
नगर निकायों को संसाधन, प्रशिक्षण और निर्णय क्षमता देनी होगी। शहरी नियोजन में केवल इंजीनियरिंग और आर्किटेक्चर नहीं, बल्कि सामाजिक विज्ञान, जनस्वास्थ्य, पर्यावरण अध्ययन और जनसंवाद की समझ को शामिल करना होगा। विकास का उद्देश्य केवल इमारतें खड़ी करना नहीं, बल्कि नागरिकों को सम्मान, सुविधा और भागीदारी का जीवन देना है।
-देवेन्द्रराज सुथार
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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