डेटा की दलाली और ऋण की रेलमपेल

अनचाही कॉल्स से परेशान 

डेटा की दलाली और ऋण की रेलमपेल

कभी दोपहर की झपकी के बीच, कभी सभा के समय, कभी मंदिर के बाहर, तो कभी वाहन चलाते समय यह स्वर अब हमारे जीवन की अनिवार्य पृष्ठभूमि बन चुका है।

नमस्ते महोदय! क्या आप व्यक्तिगत ऋण लेना चाहेंगे। कभी दोपहर की झपकी के बीच, कभी सभा के समय, कभी मंदिर के बाहर, तो कभी वाहन चलाते समय यह स्वर अब हमारे जीवन की अनिवार्य पृष्ठभूमि बन चुका है। यह मात्र एक स्वर नहीं, बल्कि एक कृत्रिम उत्पीड़न है,जो यह उद्घोष करता है कि हमारे नाम, दूरभाष अंक और आवश्यकताएं अब बाजार की संपत्ति बन चुकी हैं। जब सरकारें डिजिटल भारत के नारे लगाती हैं, उसी समय निजी बैंक हमारे जीवन की शांति को किस्तों में बेचने आ जाते हैं। हमारा दूरभाष अंक इन्हें कौन देता है, यह प्रश्न आज हर जागरूक नागरिक के मन में उठता है। निजी बैंक या ऋण देने वाली एजेंसियों को हमारा मोबाइल नंबर, नाम और अन्य निजी जानकारी कहां से प्राप्त होती है। उत्तर सीधा है,यह जानकारी हम स्वयं ही, अनजाने में, बाजार को सौंप देते हैं। जब हम किसी मोबाइल अनुप्रयोग को डाउनलोड करते समय बिना पढ़े मैं सहमत हूं,पर चिह्न लगाते हैं, किसी ऑनलाइन खरीदारी की वेबसाइट पर अपना मोबाइल नंबर दर्ज करते हैं,तब हम अपनी निजता को बाजार के हवाले कर देते हैं।

डेटा दलाली है :

ऐसे अनेक मोबाइल अनुप्रयोग होते हैं, जो हमारे संपर्क,संदेशों, स्थान और यहां तक कि हमारे फोटो तक की पहुंच मांगते हैं। और हम, सुविधा के नाम पर, इन्हें सहमति दे देते हैं। बाद में यही जानकारी अलग-अलग बिचौलियों द्वारा निजी बैंकों और विक्रय अभिकर्ताओं को बेच दी जाती है। यह एक प्रकार की डेटा दलाली है,जिसमें व्यक्ति की निजता को मूल्यवान वस्तु मानकर नीलाम किया जाता है। सरकारी बैंक क्यों नहीं करते ऐसा, जहां निजी बैंक दिन-रात मोबाइल पर ऋण प्रस्ताव भेजते हैं, वहीं सरकारी बैंक अपेक्षाकृत शांत और पारंपरिक तरीके से कार्य करते हैं। सरकारी बैंकों में आज भी ऋण प्राप्त करने के लिए भारी कागजी कार्यवाही, दस्तावेजों की सत्यता, जमानतदार और कई प्रकार की प्रमाणिकताएं मांगी जाती हैं। ये बैंक सेवा को प्राथमिकता देते हैं, न कि बिक्री को। उनके पास निजी बैंकों की तरह भारी मार्केटिंग बजट नहीं होता, और न ही एजेंटों को कमिशन देने की उतनी होड़ होती है। इसलिए वे बिना मांगे किसी को कॉल नहीं करते।

लाभदायक अवसर :

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यही कारण है कि आपको कभी किसी सरकारी बैंक से तत्काल ऋण की सुविधा का फोन नहीं आता, जबकि निजी बैंक आपको ग्राहक से अधिक लाभदायक अवसर के रूप में देखते हैं। जो लोग वास्तव में आर्थिक रूप से पिछड़े हैं, जिन्हें ऋण की आवश्यकता सबसे अधिक है, उन्हें न तो कॉल आता है, न कोई बैंक प्रतिनिधि उनके द्वार पहुंचता है। ऐसे लोगों के पास क्रेडिट स्कोर नहीं होता, उनकी आय अनियमित होती है, और उनके पास न संपत्ति होती है, न बैंकिंग इतिहास। इसलिए बैंक उन्हें जोखिम मानते हैं, संभावना नहीं। वहीं, जिन लोगों ने पहले से किसी ऋण का भुगतान समय पर किया है, जो व्यक्ति ऑनलाइन खरीदारी करते हैं या जिनकी आय अधिक है, वही निजी बैंकों के लिए लक्ष्य होते हैं।

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अनचाही कॉल्स से परेशान :

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यह प्रश्न अब केवल विचार का विषय नहीं रहा,यह वास्तविक अनुभव बन चुका है। अधिकांश लोग दिन में चार-पांच बार अनचाही कॉल्स से परेशान रहते हैं। इन कॉल्स को ठुकराने पर भी चैन नहीं मिलता। एक नंबर बंद किया तो दूसरा फोन आने लगता है। यह एक प्रकार की वित्तीय मानसिक हिंसा है,जिसमें व्यक्ति को यह अहसास दिलाया जाता है कि यदि उसने ऋण नहीं लिया, तो वह कोई अवसर खो रहा है, या आर्थिक दृष्टि से पिछड़ रहा है। निजता की यह चोरी केवल बैंकों द्वारा नहीं होती। इसके पीछे एक बड़ा और संगठित तंत्र है, जिसमें मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियां, विभिन्न मोबाइल अनुप्रयोग, नौकरी खोजने वाले पोर्टल, बीमा विक्रेता, ई-कॉमर्स कंपनियां और यहां तक कि कुछ सरकारी वेबसाइटें भी शामिल हो सकती हैं।

डेटा संरक्षण विधेयक :

यह संस्थाएं विभिन्न माध्यमों से हमारे निजी विवरण एकत्र करती हैं और फिर इन्हें कई बार खुले बाजार में विक्रय कर देती हैं। कई बार बैंक प्रतिनिधि आपको कॉल करके आपके पिताजी का नाम, आपकी जन्मतिथि, नौकरी, यहां तक कि आपकी मासिक आय तक बता देते हैं। इससे स्पष्ट है कि हमारा निजी जीवन अब सार्वजनिक मंच पर बिकने वाली वस्तु बन चुका है। सरकार ने वर्ष 2023 में डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक पारित किया था। इसके अनुसार, किसी भी संस्था को आपकी अनुमति के बिना आपका व्यक्तिगत डेटा उपयोग करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। किन्तु व्यवहार में यह विधेयक आज भी कागजों तक ही सीमित है। ना तो कॉल्स रुके हैं, न ही डेटा की दलाली थमी है। जब तक इन नियमों का पालन कराने के लिए कठोर दंड और स्पष्ट नियंत्रण नहीं होंगे, तब तक नागरिकों की निजता मात्र एक हास्यास्पद अवधारणा बनी रहेगी।

-प्रियंका सौरभ
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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