स्वस्थ जीवन के लिए जरूरी है खाद्य सुरक्षा

एक वैश्विक जिम्मेदारी बन चुकी 

स्वस्थ जीवन के लिए जरूरी है खाद्य सुरक्षा

स्वच्छ भोजन केवल स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा नहीं है।

स्वच्छ भोजन केवल स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा नहीं है, बल्कि यह मानव जीवन की गरिमा, सतत विकास, आर्थिक उन्नति और सामाजिक स्थिरता से भी गहराई से जुड़ा है। आज जब दुनिया खाद्य उत्पादन, आपूर्ति श्रृंखला और उपभोग की जटिलताओं से गुजर रही है, तब खाद्य सुरक्षा केवल एक स्वास्थ्य लक्ष्य नहीं बल्कि एक वैश्विक जिम्मेदारी बन चुकी है। खाद्य सुरक्षा का अर्थ केवल पेट भरने से नहीं है, बल्कि इस बात से है कि हर व्यक्ति को पर्याप्त, पोषक, सुरक्षित और गुणवत्ता युक्त भोजन निरंतर मिले। परंतु जब यह भोजन विषाक्त, अशुद्ध, या संक्रमित होता है, तो वह हमारे शरीर के लिए औषधि नहीं बल्कि धीमा जहर बन जाता है। खाद्य जनित बीमारियां, खाद्य अपशिष्ट, मिलावट, कीटनाशक और विषाणुओं की उपस्थिति आज वैश्विक स्वास्थ्य संकट का हिस्सा बन चुके हैं। ऐसे में खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना केवल सरकारों की ही नहीं, बल्कि नागरिकों, किसान, व्यापारी और उपभोक्ताओं, सभी की जिम्मेदारी है। 

भारत जैसे विशाल और विविध देश में, जहां कृषि जीवनशैली का अभिन्न अंग है, वहां खाद्य सुरक्षा का मुद्दा और भी अधिक संवेदनशील हो जाता है। देश में प्रतिदिन करोड़ों लोग सड़क किनारे ढाबों, ठेलों या घरों में पकाए गए भोजन पर निर्भर रहते हैं। इन सभी स्रोतों में भोजन की स्वच्छता और गुणवत्ता की निगरानी करना एक बड़ी चुनौती है। खाद्य जनित रोग, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, अक्सर रिपोर्ट नहीं होते और इसका दुष्प्रभाव बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों पर अधिक पड़ता है। भारत सरकार ने इस दिशा में कई अहम कदम उठाए हैं। खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण की स्थापना का उद्देश्य खाद्य सामग्री की गुणवत्ता को नियंत्रित करना है। आज भी यह संस्था स्कूलों, कॉलेजों, होटलों, दुकानों और सुपरमार्केट्स में खाद्य निरीक्षण कर रही है। 

ऑनलाइन खाद्य बेचने वालों के लिए भी नियम बनाए गए हैं ताकि वे ग्राहकों को सुरक्षित और गुणवत्ता युक्त भोजन उपलब्ध कराएं। लेकिन केवल कानून बना देने से कार्य सिद्ध नहीं होता। आम नागरिक को भी यह समझना होगा कि भोजन की स्वच्छता से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिए, खुले में बिकने वाले खाद्य पदार्थ, बार-बार तले गए तेल में बना खाना, या सस्ते दाम पर बिकने वाला मिलावटी दूध उपभोक्ता को थोड़े समय में आर्थिक लाभ दे सकते हैं, लेकिन दीर्घकाल में शरीर को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं। जागरूक उपभोक्ता स्वयं ही मिलावट की पहचान करना, अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पाद खरीदना, खाने से पहले धोना या गर्म करना जैसी आदतों से सुरक्षित रह सकता है। आज वैश्विक स्तर पर खाद्य सुरक्षा को लेकर अनेक चुनौतियां हैं। जैसे जलवायु परिवर्तन के कारण खेती में हो रहे बदलाव, फसल उत्पादन में कीटनाशकों का बढ़ता उपयोग, आपूर्ति श्रृंखला की जटिलता, खाद्य पदार्थों की बर्बादी, और व्यापार में प्रतिस्पर्धा के चलते गुणवत्ता में गिरावट। इन सबके बीच एक छोटी सी गलती लाखों लोगों की जान जोखिम में डाल सकती है। यह बात कोविड महामारी के समय विशेष रूप से स्पष्ट हुई थी, जब संक्रमण फैलने के प्रमुख कारणों में असुरक्षित खाद्य पैकेजिंग और प्रसंस्करण की भूमिका भी देखी गई। खाद्य सुरक्षा का एक और महत्वपूर्ण पक्ष पोषण सुरक्षा है। केवल पेट भरना ही पर्याप्त नहीं है, भोजन में आवश्यक पोषक तत्वों का होना जरूरी है। 

आज भारत में एक ओर कुपोषण है तो दूसरी ओर मोटापा, हृदय रोग और मधुमेह जैसी बीमारियां भी बढ़ रही हैं। इसका कारण भोजन में असंतुलन और गलत खानपान है। बहुत अधिक तला-भुना, रसायनयुक्त और संसाधित भोजन हमारी जीवनशैली को नुकसान पहुंचा रहा है। ऐसे में जागरूकता अभियान, पोषण शिक्षा और संतुलित आहार पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है। विद्यालयों में खाद्य सुरक्षा और पोषण से संबंधित शिक्षा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। जब बच्चे बचपन से यह समझेंगे कि क्या खाना है, कैसे खाना है और क्यों खाना है, तो वे बड़े होकर स्वस्थ और जिम्मेदार नागरिक बनेंगे। इसके साथ महिला समूहों, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और ग्राम सभाओं को भी खाद्य जागरूकता के कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी करनी चाहिए। बाजार में उपलब्ध पैकेज्ड खाद्य सामग्री में प्रयुक्त रसायनों और संरक्षकों पर भी निगरानी आवश्यक है। उपभोक्ता को यह जानने का अधिकार है कि उसके द्वारा खरीदे गए उत्पाद में क्या मिला है, उसकी अंतिम तिथि क्या है और उसका स्रोत कहां है। फूड लेबल पढ़ना आज भी हमारे देश में अधिकांश उपभोक्ता नहीं जानते या नजरअंदाज करते हैं। जबकि यही एक साधारण आदत उन्हें असुरक्षित उत्पादों से बचा सकती है। 

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खेती के स्तर पर भी किसानों को जैविक खेती, प्राकृतिक कीटनाशक, फसल चक्र और खाद्य भंडारण की आधुनिक तकनीकों की जानकारी दी जानी चाहिए। सरकार की कई योजनाएं जैसे प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, पोषण अभियान, किसान उत्पादक संगठन आदि किसानों को सीधे जोड़कर खाद्य सुरक्षा मजबूत कर रही हैं। लेकिन इन योजनाओं का प्रभाव तभी होगा जब जमीनी स्तर पर सही तरीके से उनका पालन हो और किसानों को प्रशिक्षण मिले। खाद्य सुरक्षा केवल स्थानीय नहीं, बल्कि वैश्विक मसला भी है। आज दुनिया भर में खाद्य व्यापार इतना आपस में जुड़ गया है कि एक देश में हुआ उत्पादन दूसरे देश के लोगों के लिए भोजन बनता है। ऐसे में किसी एक देश की लापरवाही से पूरे क्षेत्र में खाद्य संकट फैल सकता है। 

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वैश्विक स्तर पर खाद्य गुणवत्ता के मानकों का आदान-प्रदान, आपातकालीन सूचनाओं का त्वरित संचार और खाद्य परीक्षण की पारदर्शी प्रणालियां आज की जरूरत हैं। यदि कोई खाद्य विक्रेता नियमों की अनदेखी कर रहा है, तो उसके विरुद्ध शिकायत करना भी एक सामाजिक जिम्मेदारी है। यदि हम भोजन को बर्बाद करेंगे, तो किसानों की मेहनत और प्राकृतिक संसाधनों का अपमान होगा और यदि हम केवल दिखावे के लिए भोजन करेंगे, तो शरीर को रोग और समाज को असमानता का शिकार बनाएंगे। भविष्य की पीढ़ियों को एक ऐसा संसार देने के लिए जहां भूख, बीमारी और अस्वच्छता का स्थान न हो, हमें आज ही से प्रयास करना होगा।

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-रंजना मिश्रा
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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