न्याय की नई सुबह आई

फैसले की प्रतीक्षा 

न्याय की नई सुबह आई

वर्तमान में देश के न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है।

वर्तमान में देश के न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है, जिससे आमजन को समय पर सस्ता व त्वरित न्याय मिलने में कठिनाई हो रही है। आंकड़ों के अनुसार देशभर के विभिन्न न्यायालयों में इस समय करीब 5.2 करोड़ मुकदमे लंबित हैं, जिनमें से केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही 82 हजार से अधिक मामले 6 माह से लेकर 16 वर्ष तक के लंबित है। अकेले राजस्थान के उच्च न्यायालय में लंबे अंतराल से 6 लाख से अधिक मुकदमे लंबित हैं तथा राज्य में विभिन्न जिला व अधीनस्थ न्यायालयों में लंबे अंतराल से 23 लाख से ज्यादा मुकदमे लंबित हैं, जो न केवल न्यायिक ढांचे पर बड़ा दबाव हैं, बल्कि सस्ता, सुलभ व त्वरित न्याय नहीं मिल पाने के कारण जस्टिस डिले इज जस्टिस डिनायड के भाव को प्रकट करता है।

न्यायाधीशों की कमी :

देशभर में न्यायालयों पर बढ़ते दबाव का एक प्रमुख कारण न्यायाधीशों की भारी कमी भी है। हाल ही में जारी इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025 के अनुसार देश में लगभग 21 हजार न्यायाधीश हैं यानी प्रति दस लाख आबादी पर करीब 15 न्यायाधीश हैं, जो विधि आयोग की प्रति 10 लाख आबादी पर 50 न्यायाधीशों की अनुशंसा से अत्यंत कम है। वहीं उच्च न्यायालयों में करीब 33प्रतिशत और जिला न्यायालयों में करीब 21प्रतिशत न्यायाधीशों के पद लंबे समय से रिक्त है। अकेले माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के कुल स्वीकृत पदों में से 24 प्रतिशत पद रिक्त हैं, जिससे न्याय प्रक्रिया और अधिक धीमी हो गई है। इससे बदतर हालात अधीनस्थ व राजस्व अदालतों में भी है। निचली अदालतों में मुकदमों की भारी संख्या और न्यायाधीशों की कमी के कारण मामलों के निस्तारण में वर्षों लग जाते हैं।

लंबित मुकदमें :

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स्पष्ट है कि केवल नियुक्तियों के जरिए भी न्यायालयों मे लंबित मुकदमों के बोझ को कम कर पाना संभव नहीं है, क्योंकि आज की जटिल न्यायिक प्रक्रिया से भी लंबित मुकदमों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। ऐसे में मीडिएशन फॉर द नेशन जैसे विशेष मध्यस्थता अभियान स्वत: ही एक व्यवहारिक और प्रभावी समाधान बनकर उभरता है, जो ना केवल अदालतों के बोझ को कम करता है, बल्कि पक्षकारों को त्वरित, खर्च कम और मानसिक रूप से सहज समाधान भी उपलब्ध कराता है।

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ऐसे समय में जब न्यायिक व्यवस्था पर बढ़ते बोझ से पूरा तंत्र जूझ रहा है, तब राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण तथा मध्यस्थता एवं सुलह परियोजना समिति, माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशन में राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा दिनांक 1 जुलाई 2025 से 30 सितम्बर 2025 तक 90 दिवसीय मीडिएशन फॉर द नेशन नामक विशेष मध्यस्थता अभियान प्रारंभ किया गया है, जिसका उद्देश्य माननीय उच्च न्यायालय और जिला न्यायालयों में वर्षों से लंबित प्रकरणों को आपसी सहमति और संवाद के जरिए मध्यस्थता के माध्यम से सुलझाना है।

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मीडिएशन फॉर द नेशन :

मीडिएशन फॉर द नेशन अभियान के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के राजीनामा योग्य व स्वैच्छिक प्रकृति के प्रकरणों की सुनवाई की जाती है। राजस्थान की न्यायिक व्यवस्था के सन्दर्भ में मीडिएशन फॉर द नेशन अभियान विशेष रूप से महत्वपूर्ण बन जाता है। राज्य में न केवल उच्च न्यायालय में लंबित मामलों की संख्या अधिक है, बल्कि जिला स्तर पर भी हजारों ऐसे मामले हैं, जो आपसी सहमति और संवाद से सुलझाए जा सकते हैं। यदि इस अभियान के माध्यम से सिर्फ 10 से 15 प्रतिशत मामलों को भी सफलतापूर्वक निपटाया गया, तो यह लगभग 60 हजार से 90 हजार मामलों का तत्काल समाधान होगा, जिससे माननीय प्रदेश के विभिन्न न्यायालयों का बोझ काफी हद तक कम हो सकता है।

फैसले की प्रतीक्षा :

राजस्थान में राजस्व न्यायालयों में भी लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, जिससे आम नागरिकों को वर्षों तक फैसले की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। हालांकि दीर्घकालिक समाधान हेतु एक स्थायी और संरचित व्यवस्था की आवश्यकता है, जो राजस्व प्रकरणों के निस्तारण में प्रभावी निपटारे को सुनिश्चित कर सके। केन्द्र सरकार की पहल पर माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर प्रारंभ हो रहे मीडिएशन फॉर द नेशन अभियान केवल एक अभियान भर नहीं है, बल्कि न्यायिक प्रकरणों के तात्कालिक समाधान के साथ न्याय के लोकतंत्रीकरण की दिशा में एक क्रांतिकारी प्रयास भी है। पारंपरिक अदालती प्रक्रिया में जहां पक्षकार एक-दूसरे के विरुद्ध होते हैं, वहीं मध्यस्थता में वे एक समाधान की ओर सहयात्री बनते हैं। इससे सामाजिक सौहार्द बढ़ता है, पारिवारिक और व्यावसायिक संबंध टूटने से बचते हैं और लोग एक-दूसरे पर भरोसा करना सीखते हैं। यह पहल अदालतों के बढ़ते बोझ को कम करने, जनता को त्वरित और नि:शुल्क न्याय दिलाने की दिशा में एक निर्णायक कदम है। यह वह पहल है, जो न्याय के मंदिरों में उम्मीद की एक नई सुबह लेकर आ सकती है।

-राजेन्द्र राठौड़
पूर्व नेता प्रतिपक्ष
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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