नक्सल आंदोलन के दिन अब गिने-चुने

देश के 30 नक्सल प्रभावित जिलों में कोंडागांव और बस्तर टॉप पर थे

नक्सल आंदोलन के दिन अब गिने-चुने

नक्सल आंदोलन का अस्तित्व अब समाप्त होने के कगार पर है।

नक्सल आंदोलन का अस्तित्व अब समाप्त होने के कगार पर है। क्रांतिकारी बदलाव लाने के विलुप्त हो चुके अतीत को सिर्फ हिंसा, लूट, आतंक की बदौलत घसीट रहे यह माओवादी खुद को तथाकथित आंदोलन चलानेवाले कहते हैं। मई, 2025 का अंतिम सप्ताह सरकार और समाज की भाषा में नक्सल उग्रवाद के इतिहास का अंतिम अध्याय के रूप में याद किया जाएगा। 58 साल पहले मई महीने के अंतिम सप्ताह में ही पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से इस आंदोलन की शुरूआत हुई थी। 25 मई, 1967 को पश्चिम बंगाल के हाथीघीसा गांव में आदिवासियों की जमीन हड़प कर उनका शोषण करनेवाले जमीन्दारों के समर्थन में पहुंची, पुलिस टीम पर आदिवासी महिलाओं ने अपनी जीविका बचाने के हमला किया था। उसके जवाब में हुई पुलिस फायरिंग में 11 लोग मारे गए। पुलिस टीम पर पहला तीर शांति मुंडा ने अपने दुधमुंहे बच्चे को पीठ से बांधे रखकर चलाया था। उस घटना को नक्सल आंदोलन का उदय माना जाता है। नक्सल सफाया अभियान के तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देशन में चल रहे संयुक्त सुरक्षा बल के ऑपरेशनों से अब यह वाम उग्रवाद अस्त होने की हालत में पहुंच गया है।पुलिस बलों ने बचे-खुचे नक्सलियों की ये नौबत ला दी है कि सरेंडर करने या जान गंवाने के सिवाए दूसरा चारा नहीं रह गया है। 21.4.2025 से ऑपरेशन संकल्प अभियान 21 दिनों का लक्ष्य लेकर चलाया गया। इस दौरान पुलिस बलों ने बिना सुस्ताए और नक्सलियों को संभलने का मौका दिए बिना नक्सली ठिकानों पर हमला जारी रखा। 

मई समाप्त होने से पहले नक्सलियों के सबसे मजबूत गढ़ बस्तर क्षेत्र के ठिकाने ध्वस्त करने में भारी सफलता मिली। ये जगह थी छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर कर्रेगट्टालू पहाड़ी जहां लगातार हुई गोलीबारी में 31 नक्सली मारे गए। केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल स्टेट पुलिस बल खुफिया एजेंसियां, कोबरा बटालियन, सीमा सुरक्षा बल और भारतीय वायु सेना द्वारा संयुक्त रूप से चलाए गए इस अभियान को सीआरपीएफ डायरेक्टर जनरल ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह ने नक्सलवाद की समाप्ति की शुरूआत बताया। इस 21 दिनों के ऑपरेशन संकल्प काल में नक्सलियों के सबसे संगठित गुट सीपीआई समेत विभिन्न प्रतिबंधित जमातों का पुलिस के सामने सरेंडर का भी सिलसिला जारी रहा। प्रतिबंधित सीपीआई का सबसे बड़ा नेता और शीर्ष कमांडर नम्बाला केशव राव का मारा जाना सुरक्षा बलों की सबसे बड़ी उपलब्धि रही। इससे यह संगठन नेतृत्वविहीन हो गया और सारे नक्सल गुट बिखर गए हैं। तेलंगाना-छत्तीसगढ़ सीमा पर सबसे ज्यादा दबदबा और दबंग हैसियत वाला माओवादी नेता था। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लाल आतंक वाले पहाड़ पर तिरंगा लहराना नक्सल मुक्त भारत की दिशा में बड़ी सफलता बताया। इससे देश का सबसे बड़ा नक्सल गढ़ ध्वस्त हो गया।

सीआरपीएफ डीजी ने नक्सलियों पर काबू पाने के अब तक के अभियानों में इसे सबसे सफल बताया और कहा कि गृह मंत्री अमित शाह के 31 मार्च, 2026 तक नक्सल सफाया डेडलाईन से पहले ही यह लक्ष्य पूरा होते दिख रहा है । 24 हजार जवान इस अभियान में शामिल हैं और मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ के बीजापुर, नारायणपुर तथा उससे सटे तेलंगाना के भद्राद्री-मुलुगू-कोठागुडेम के 800 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले दुर्गम घने जंगल वाले पहाड़ी इलाकों की चारों ओर से घेराबंदी करके नक्सली किले को ठहाया गया। सीआरपीएफ अधिकारी के अनुसार यह बरसात तक बिना ढील दिए चलाया जाएगा। क्योंकि बाढ़ में नदियों के उफनने से दूरदराज के बीहड़ वाले नक्सली ठिकानों तक पहुंचना कठिन हो जाने के कारण सुरक्षा बल लाचार हो जाते हैं। इसका फायदा उठाकर नक्सलियों को नई मोर्चाबंदी का अवसर मिल जाता है। इस बार तकनीकी खुफिया सूचनाओं के आधार पर ऐसा इंतजाम लगाया गया है कि इन्द्रावती नदी के कम जलप्लावन वाले किनारे के आसपास ऊंचे कैंप बनाए जाएं, जहां से नक्सली बीहड़ों को निशना बनाया जा सके। 

सीआरपी सूत्रों को अंदेशा है कि माओवादी गुट और पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी के इधर-उधर बिखरे नक्सली अपनी बौखलाहट उतार सकते हैं । इन कैंपों का संचालन एलीट कोबरा बटालियन और सीआरपी के हाथ में होगा। झारखंड-ओडिशा सीमा के निकट मई के अंतिम सप्ताह में ही सुरक्षा बलों को कामयाबी मिली। नक्सल सफाया अभियान छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड, तेलंगाना, महाराष्ट्र और बिहार के नक्सल प्रभावित जिलों में एक साथ चलाया जा रहा है। बिहार को छोड़कर बाकी सभी राज्यों के नक्सली गढ़ वाले इलाके से माओवादियों के मारे जाने और सरेंडर की खबरें आ रही हैं। इनमें छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र को सुरक्षा दस्ते ने सबसे कठिन चुनौती के रूप में पहले निशाने पर लिया था। अब तक बस्तर क्षेत्र नक्सलियों के अभेद्य दुर्ग के रूप में जाना जाता था। यहीं से अन्य नक्सल राज्यों की भी नक्सल गतिविधियों का संचालन होता था बस्तर क्षेत्र के नक्सल ऑपरेशन आईजी पी सुदंरराज ने दावा किया कि कई दशकों के बाद बस्तर आज नक्सल मुक्त क्षेत्र है और अब यह क्षेत्र सरकार की लाल सूची से बाहर है। 

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देश के 30 नक्सल प्रभावित जिलों में कोंडागांव और बस्तर टॉप पर थे। 28 मई को रायपुर में आईजी सुंदरराज ने यह जानकारी दी कि नक्सल हमलों का सबसे बड़ा मास्टरमाइंड सीपीआई माओवादी महासचिव बसवराजू समेत 27 नक्सलियों के मारे जाने के बाद मिशन निर्णायक मोड़ पर है। झारखंड से एक अच्छी खबर उस दौरान आई कि सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित जिले लातेहार और कोडरमा के छात्र-छात्राओं ने इंटर परीक्षा के परिणाम में बाजी मारी। हवा बदली है, लोगों में समाज के बीच से नक्सली खौफ खतम हो रहा है। 

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-शशिधर खान
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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