देशी फ्रिज की वापसी : रंग-बिरंगे और नल युक्त मटके कर रहे आकर्षित
50 रुपए से लेकर 350 रुपए तक है कीमत
सेहत और संस्कृति दोनों का हो रहा बचाव।
छीपाबड़ौद। गर्मी की दस्तक के साथ ही छीपाबडौद कस्बे की गलियों में एक पुरानी लेकिन बेहद भरोसेमंद परंपरा की वापसी देखने को मिल रही है। मिट्टी से बने मटके और मटकी जिन्हें आम बोलचाल में देशी फ्रिज कहा जाता है। इन दिनों कस्बे में जबरदस्त लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं। तेज धूप और बढ़ते तापमान ने जहां बिजली से चलने वाले फ्रिज की सीमाएं उजागर कर दी हैं। वहीं ये देसी मटके एक बार फिर ठंडक की तलाश में लोगों की पहली पसंद बन गए हैं।
मिट्टी में छुपी ठंडक की ताकत
बिजली से मुक्त और पूरी तरह प्राकृतिक मटके-मटकी न केवल शरीर को राहत पहुंचाते हैं बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बेहद लाभकारी हैं। आयुर्वेद विशेषज्ञों के अनुसार मटके का पानी शरीर की गर्मी को संतुलित करता है और पाचन में सहायक होता है। यह गले को नुकसान नहीं पहुंचाता और शरीर को भीतर से ठंडक प्रदान करता है।
ट्रेडिशन बनी आधुनिक जरूरत
एक ओर जहां बिजली की कटौती और महंगे बिल लोगों की परेशानी का कारण बन रहे हैं। वहीं मटका एक सस्ता, टिकाऊ और ऊर्जा रहित विकल्प बनकर उभरा है। न कोई बिजली की जरूरत, न कोई रखरखाव—बस ठंडी मिट्टी की सौंधी खुशबू और प्राकृतिक ठंडक।
कला को मिला नया जीवन
इस देसी फ्रिज की बढ़ती मांग ने कुम्हारी कला में फिर से जान फूंक दी है। कई कुम्हार परिवार जो इस पेशे से दूर हो चुके थे। अब फिर से चाक पर लौट आए हैं। यह न केवल आत्मनिर्भरता की मिसाल है बल्कि पर्यावरण की रक्षा की दिशा में भी एक सकारात्मक कदम है। जब मौसम सख्त हो और शरीर को राहत की जरूरत हो, तब आधुनिक मशीनों से हटकर परंपरा की ओर लौटना ही समझदारी है। मटका न केवल शरीर को ठंडक देता है बल्कि जीवन में मिट्टी की सादगी और संस्कृति की गरिमा भी लौटाता है। इस गर्मी देशी फ्रिज की यही सादगी हर दिल को भा रही है।
कीमत सस्ती, सेहत भारी
मटकों की कीमत 50 रुपये से लेकर 350 रुपये तक जा रही है। यह दाम उनके आकार, डिजाइन और सुविधाओं पर निर्भर करते हैं। मटके के साथ अब रंगीन कवर, ढक्कन और नल जैसे आकर्षक फीचर्स भी मिलने लगे हैं।
गली-नुक्कड़ों पर सजी स्टॉल
कस्बे के कई मौहल्लों में इन दिनों कुम्हार समाज के लोग रंग-बिरंगे मटकों के स्टॉल सजाए खड़े हैं। कहीं पर चिकनी मिट्टी के साधारण मटके बिक रहे हैं तो कहीं आधुनिक डिजाइन वाले नल युक्त मटके ग्राहकों को आकर्षित कर रहे हैं। जैसे ही तापमान 38 डिग्री पार हुआ। इन मटकों की मांग में अचानक उछाल आ गया।
इनका कहना है
लोग अब मटका सिर्फ पानी रखने के लिए नहीं बल्कि सेहत और संस्कृति दोनों को बचाने के लिए भी खरीद रहे हैं।
- कुंजबिहारी प्रजापति, दुकानदार।
देसी मटके एक बार फिर ठंडक की तलाश में लोगों की पहली पसंद बन गए हैं। गर्मी के चलते देसी मटकी और मटकों की बिक्री में इजाफा हुआ है।
- गोलू कुम्हार, दुकानदार।
मटके का पानी प्राकृतिक रूप से ठंडा होता है, जो शरीर की गर्मी को संतुलित करता है और पाचन में सहायक होता है। यह गले को नुकसान नहीं पहुंचाता और बर्फ या फ्रिज के पानी की तुलना में स्वास्थ्य के लिए ज्यादा फायदेमंद है। मिट्टी के बर्तन न सिर्फ सेहतमंद, बल्कि पर्यावरण के लिए भी लाभकारी हैं।
- डॉ. पवन मेघवाल, आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारी।

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