बोनमेरो में विकृति से बढ़ती है रक्त में डब्ल्यूबीसी की संख्या : यही बनती है ल्यूकेमिया यानी ब्लड कैंसर की वजह, मामूली समझे जाने वाले लक्षण भी बन सकते हैं जानलेवा
समय पर पहचान और आधुनिक इलाज से बच सकता है जीवन
शरीर में रोगों से लड़ने वाली श्वेत रक्त कोशिकाएं यानी डब्ल्यूबीसी जब नियंत्रण से बाहर हो जाए तो यही जीवन रक्षक, रोग का कारण बन जाते हैं।
जयपुर। शरीर में रोगों से लड़ने वाली श्वेत रक्त कोशिकाएं यानी डब्ल्यूबीसी जब नियंत्रण से बाहर हो जाए तो यही जीवन रक्षक, रोग का कारण बन जाते हैं। अस्थि मज्जा यानी बोनमेरो में विकृति के कारण जब डब्ल्यूबीसी की संख्या असामान्य रूप से बढ़ने लगती है, तो यह स्थिति ल्यूकेमिया कहलाती है, जिसे आम भाषा में ब्लड कैंसर कहा जाता है। यह रक्त का एक गंभीर विकार है, जो समय रहते पहचान न होने पर जानलेवा साबित हो सकता है। ल्यूकेमिया की शुरुआत अक्सर बेहद साधारण लक्षणों से होती है। जैसे बार-बार बुखार आना, मसूड़ों से खून निकलना, शरीर पर नीले निशान पड़ना या बार-बार थकावट महसूस होना। कैंसर विशेषज्ञों का कहना है कि इन लक्षणों को आम बीमारी समझकर टाल देना कई बार जानलेवा साबित हो सकता है।
उपचार में आई, तकनीकी क्रांति
डॉ. शर्मा ने बताया कि ल्यूकेमिया का इलाज पहले की तुलना में अधिक प्रभावी हो गया है। रक्त परीक्षण और बोन मैरो जांच से रोग की पुष्टि की जाती है। रोगी की स्थिति के अनुसार कीमोथैरेपी, इम्यूनोथैरेपी और टारगेटेड थैरेपी जैसे आधुनिक उपचार दिए जाते हैं। इम्यूनोथैरेपी जहां शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली को मजबूत बनाती है, टारगेटेड थैरेपी सीधे कैंसर कोशिकाओं पर हमला कर उन्हें समाप्त करती है।
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