विश्व फेफड़ा कैंसर डे : हर साल फेफड़ों के कैंसर से 75 हजार मौतें, इम्यूनोथैरेपी बनी नई उम्मीद
हर हफ्ते 10 नए मरीज, 90% स्मोकर
सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. शीतू सिंह ने बताया कि फेफड़ों में कैंसर के करीब 15 से 20 प्रतिशत मरीजों में ऐसी स्थिति बनती है, जहां सांस की नली आंशिक या पूर्ण रूप से अवरुद्ध हो जाती है और डी- बल्किंग जरूरी हो जाता है।
जयपुर। फेफड़ों में पलने वाला कैंसर भारत में तेजी से जानलेवा बीमारी बनता जा रहा है। देश में हर साल करीब 75 हजार लोगों की मौत इस कैंसर से हो रही है, जिसमें 85 प्रतिशत मामलों में स्मोकिंग जिम्मेदार है। विशेषज्ञों के अनुसार यह कैंसर पुरुषों में दूसरा सबसे आम कैंसर है, जबकि कुल मामलों में यह चौथे नंबर पर आता है। वर्ल्ड फुफ्फस कैंसर डे के मौके पर कैंसर और रेस्पिरेटरी रोग विशेषज्ञों ने लोगों को जागरूक करते हुए समय पर जांच और धूम्रपान से दूरी को जरूरी बताया।
हर हफ्ते 10 नए मरीज, 90% स्मोकर
एसएमएस मेडिकल कॉलेज के रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. रविंद्र सिंह गोठवाल ने बताया कि स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट में हर हफ्ते फेफड़ों में कैंसर के लगभग 10 नए मरीज सामने आ रहे हैं। इनमें अधिकांश धूम्रपान करने वाले होते हैं।
स्मोकर्स के लिए हर साल लो-डोज सीटी स्कैन जरूरी
सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. केके शर्मा ने बताया कि फेफड़ों में कैंसर की स्क्रीनिंग के लिए लो-डोज सीटी स्कैन यानी एडीसीटी फेफड़ों में मौजूद छोटी से छोटी गांठ की भी पहचान कर सकता है, जिससे कैंसर का प्रारंभिक चरण में पता चल जाता है। इससे इलाज की सफलता दर बढ़ जाती है और मृत्यु दर में 20-25 प्रतिशत तक की कमी लाई जा सकती है।
बदली इलाज की तस्वीर
सीनियर मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. ताराचंद गुप्ता ने बताया कि हाल ही में केंद्र सरकार ने कैंसर की कुछ महंगी दवाओं की एक्साइज ड्यूटी घटाई है। इससे ओसिमर्टिनिब और डूर्वेलुमेब जैसी दवाएं सस्ती हुई हैं, जिससे फेफड़ों में कैंसर के मरीजों को राहत मिलेगी।
ट्यूमर को निकालेगी नई तकनीक
सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. शीतू सिंह ने बताया कि फेफड़ों में कैंसर के करीब 15 से 20 प्रतिशत मरीजों में ऐसी स्थिति बनती है, जहां सांस की नली आंशिक या पूर्ण रूप से अवरुद्ध हो जाती है और डी- बल्किंग जरूरी हो जाता है। ऐसे मामलों में ब्रोंकोस्कोपी की मदद से डी-बल्किंग प्रोसीजर किया जाता है, जिसमें एंडोस्कोपिक तकनीक से कैंसर की ग्रोथ को अंदर से हटाया जाता है। इस तकनीक से बिना चीरफाड़ के ट्यूमर निकाला जा सकता है।

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