मिट्टी से मेट तक पहुंची कबड्डी लेकिन यहां सुविधा का नाम जीरो
पुरुषों के खेल में कोटा की बेटियों ने भी जमाई हैं धाक
शुरूआती दौर से लेकर अब तक कोटा जिले की करीब 3000 हजार से अधिक लड़कियों ने कबड्डी के मैदान में अपना दम दिखाया है। हर वर्ष जिले की करीब 200 लड़कियां विभिन्न स्तर पर आयोजित कबड्डी प्रतियोगिताओं में शामिल होती हैं। क्षेत्र की करीब 200 लड़कियां अब तक इस खेल में राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन कर चुकी हैं।
कोटा। भारत के प्राचीनतम खेलों में शामिल और वर्तमान समय में देश में लोकप्रियता के मामले में किक्रेट के बाद दूसरे नम्बर पर माने जाने वाले कबड्डी में जिसे केवल पुरुषों का खेल माना जाता था उसमें भी कोटा की बेटियों ने अपनी सफलता का परचम फहराया है और राष्ट्रीय स्तर पर हमारे शहर का नाम रोशन किया है। भारत के ग्रामीण अंचल से उद्भव हुआ यह खेल आज लगभग दो दर्जन देशों में खेला जा रहा है। विचारणीय बात ये हैं कि मिट्टी से शुरू हुआ ये खेल आज मेट तक भले ही पहुंच गया हो लेकिन इस खेल को खेलने वालों के लिए सरकार की ओर से सुविधाओं के नाम पर जीरो ही है। कोटा की ही बात करें तो कबड्डी का अभ्यास करने वाली इस शहर की लड़कियों को दूसरी सुविधाएं तो दूर की बात राजस्थान खेल परिषद या राज्य सरकार की ओर से मैदान तक उपलब्ध नहीं करवाया जा सका है। कोटा की लड़कियों में कबड्डी की ओर रूझान वर्ष 2000 के आसपास से ही हुआ है और तब से लेकर अब तक कोटा जिले की लड़कियों ने ना केवल राज्यीय स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी इस खेल में धाक जमाई हैं। शुरूआती दौर से लेकर अब तक कोटा जिले की करीब 3000 हजार से अधिक लड़कियों ने कबड्डी के मैदान में अपना दम दिखाया है। हर वर्ष जिले की करीब 200 लड़कियां विभिन्न स्तर पर आयोजित कबड्डी प्रतियोगिताओं में शामिल होती हैं। क्षेत्र की करीब 200 लड़कियां अब तक इस खेल में राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन कर चुकी हैं। वहीं लगभग 1200 से 1500 लड़कियों ने राज्य स्तर पर आयोजित कबड्डी प्रतियोगिता में अपनी पहचान बनाई है।
हाल ही में कोटा की सोनाक्षी यादव ने हरियाणा के महेन्द्रगढ़ में आयोजित सीनियर राष्टÑीय कबड्डी प्रतियोगिता में राजस्थान का प्रतिनिधित्व किया था और राज्य की टीम ने कांस्य पदक जीता था। क्षेत्र की बेटियों को कबड्डी के गुर सिखाने वालों का कहना हैं कि कस्बे के आस-पास के गांवो में आज भी कबड्डी का इतना के्रज है कि जिधर भी पत्थर फेंकोगे खिलाड़ियों पर ही गिरेगा। हाल ही में आयोजित हुए राजीव गांधी ग्रामीण ओलंपिक खेलों ने गांवो में कबड्डी का क्रेज और ज्यादा बढ़ा दिया है। लेकिन सुविधाएं न होने के कारण सैकड़ों खिलाड़ियों को सही रास्ता नहीं मिल पा रहा है। प्रशिक्षकों का कहना है कि देश का खेल हो, मिट्टी का खेल हो, दुश्मन के खेमे में घुसकर उसे छूकर अपने घर वापस आने का खेल हो तो जेहन में सिर्फ एक नाम आता है और वह है कबड्डी। गांव व कस्बे में प्रचलित कबड्डी के खेल में समयानुसार कई परिवर्तन होते रहे हैं। महाभारत काल से इस खेल का अस्तित्व रहा है। आज भी यह खेल प्रचलित है। पहले धूल से भरी मिट्टी वाले मैदान में इस खेल को खेला जाता था लेकिन अब कबड्डी का खेल मिट्टी से निकलकर मेट तक पहुंच गया है। कबड्डी का स्तर भले ही पूरी तरह से बदल चुका हो लेकिन इसकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई हे। अब तो कबड्डी अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंच चुकी है। कोटा के कई सफल खिलाड़ी राजस्थान पुलिस, शारीरिक शिक्षक, शिक्षा विभाग, खेल विभाग तथा कई प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होने में कामयाब रहे हैं।
इनका कहना हैं...
क्षेत्र की लड़कियों ने कबड्डी में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। सरकार ने अभी ग्रामीण ओलम्पिक करवाएं थे जिसमें कई गांवों की लड़कियों ने बेहतर प्रदर्शन किया हैं। लेकिन कबड्डी का अभ्यास करने वाली लड़कियों को कोई सरकारी सुविधा नहीं मिलती हैं। ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियां मिट्टी पर खेलती है और शहर में उनको मेट पर खेलना होता हैं और उनका बैलेंस बिगड़ जाता हैं। सरकार या खेल परिषद की ओर से प्रत्येक ब्लॉक में मेट उपलब्ध करवाना चाहिए।
- राजेन्द्र मीणा, सीनियर शारीरिक शिक्षक।
कोटा की लड़कियां कबड्डी में शानदार प्रदर्शन कर रही हैं। इनके माता पिता का इनको पूरा सपोर्ट मिलता हैं। सबसे बड़ी समस्या ये है कि खेल परिषद या राज्य सरकार की ओर से कबड्डी के लिए कोई मैदान उपलब्ध नहीं करवाया गया है। अगर लड़कियों को सरकारी सुविधाएं और प्रोत्साहन मिले तो ये और भी अच्छा खेल सकती हैं।
- अनिल यादव, पीटीआई।
मैं लगभग 8 साल से कबड् डी खेल रही हंू। वर्तमान समय में बीपीएड कर रही हंू। स्कूल नेशनल, स्टेट, यूनिवर्सिटी और सीनियर नेशनल लेवल पर खेल चुकी हंू। रोजाना करीब 5 से 6 घंटे अभ्यास करती हंू। प्रैक्टिस का पढ़ाई पर कोई फर्क नहीं पड़ता हैं। माता-पिता का पूरा सपोर्ट मिलता हैं।
- सोनाक्षी यादव, कबड्डी खिलाड़ी।
मैं लगभग तीन साल से कबड्डी खेल रही हूं। मेरे गांव की लड़कियां खेलती थी तो उनको देखकर मेरी भी रूचि बढ़ी। रोजाना करीब 2 घंटे अभ्यास करती हंू। पढ़ाई अपनी जगह है और खेल। प्रैक्टिस का पढ़ाई पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। बहुत आगे तक इस खेल को खेलना
चाहती हंू।
- अन्तिमा मेहरा, कबड्डी खिलाड़ी

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