कोटा की पहली मस्जिद है चंद्रघटा की शाही जामा मस्जिद

ढाई सौ साल पहले बनी थी मस्जिद, खूबसूरती अब भी बरकार, महाराव उम्मेद सिंह प्रथम के शासनकाल में हुआ था मस्जिद का निर्माण

कोटा की पहली मस्जिद है चंद्रघटा की शाही जामा मस्जिद

इतिहासकार फिरोज अहमद बताते हैं जामा मस्जिद का निर्माण 18वीं शताब्दी में महाराव उम्मेद सिंह प्रथम के शासन काल में हुआ था।उस समय फौज में पठानों का बाहुल्य था और कोटा के मुख्य सेनापति दलेल खां पठान थे। ऐसे में मुस्लिम सैनिकों के इबादत के लिए तत्कालीन महाराव उम्मेद सिंह प्रथम ने चंबल किनारे मस्जिद का निर्माण करवाया था।

कोटा। शाही जामा मस्जिद चंद्रघटा किसी परिचय की मोहताज नहीं है। चंबल किनारे बसी मस्जिद अपनी खूबसूरती के लिए जानी जाती है। अपनी कलात्मक बनावट के कारण शहर ही नहीं बल्कि पूरे जिले में अलग पहचान रखती है। मेहराब जैसे प्रवेश द्वार के आर्च पर खूबसुरत दो बुलंद मीनारें खूबसूरती में चार चांद लगा देती है। इस मस्जिद को कोटा शहर की पहली जामा मस्जिद होने का गौरव भी हासिल है। इसका निर्माण 18वीं शताब्दी में रियासतकाल में हुआ था। इतिहासकार फिरोज अहमद बताते हैं जामा मस्जिद का निर्माण 18वीं शताब्दी में महाराव उम्मेद सिंह प्रथम के शासन काल में हुआ था। उनका शासनकाल सन् 1770 ई. से 1819 ई. तक था। उस समय कोटा राज्य की फौज में मुस्लिम वर्ग के लोगों की संख्या अधिक थी। फौज में पठानों का बाहुल्य था और कोटा के मुख्य सेनापति दलेल खां पठान थे। ऐसे में मुस्लिम सैनिकों के इबादत के लिए तत्कालीन महाराव उम्मेद सिंह प्रथम ने चंबल किनारे मस्जिद का निर्माण करवाया था। 

शहर की पहली मस्जिद का खिताब
इतिहासकार अहमद बताते हैं, चंद्रघटा स्थित शाही जामा मस्जिद करीब ढाई सौ साल पुरानी है। यह कोटा शहर की पहली मस्जिद है। इसकी सबसे बड़ी खूबी चंबल किनारे बसा होना है। मस्जिद के ठीक सामने कोटा बैराज है। यहां चंबल की लहरे मस्जिद की खूबसूरती बयां करती है। 18वीं शताब्दी से शहर में और भी मस्जिदों के निर्माण हुए हैं। 

17वीं शताब्दी में बनी थी कोटा ईदगाह
कोटा की ईदगाह मध्यकालीन है। 17वीं शताब्दी में निर्मित हुई थी। उस समय राव माधोसिंह कोटा राज्य के प्रथम शासक थे। उनका शासनकाल सन् 1631 से 1649 ई. तक रहा। इसी दरमियान ही कोटा की पहली ईदगाह बनी थी। 

ये मस्जिदें भी रियासतकालीन
इतिहासकार फिरोज के मुताबिक, महाराव उम्मेद सिंह प्रथम के मुख्य सेनापति दलेल खां पठान ने मौखापाड़ा स्थित अपनी हवेली में भी मस्जिद का निर्माण करवाया था, जो आज भी मौजूद है। वर्तमान में यह शाही मस्जिद के नाम से जानी जाती है। मस्जिद के दर काफी बड़े-बड़े आकार के हैं। दलेल खां की पत्नी बाबी जौहरा ने भी चंद्रघटा में मस्जिद का निर्माण करवाया था जो वर्तमान में बीबी जौहरा की मस्जिद के नाम से जानी जाती है। वहीं, पाटनपोल के चंद्रघटा वार्ड में निचला पाड़ा क्षेत्र में सिपाहियों की मस्जिद है, जो 19वीं शताब्दी की है। इसके अलावा चंद्रघटा में कई रिसायतकालीन मस्जिदें हैं। इनमें भिश्तियों की मस्जिद, कसाइयों की मस्जिद, गुले-गुलजार मस्जिद है। इस मस्जिद का निर्माण सूफी संत हजरत दूल्हे शाह ने करवाया था। इसके अलावा 19वीं शताब्दी में महाराव रामसिंह द्वितीय के शासन काल सन् 1827 से 1865 ई. तक कई मस्जिदों के निर्माण हुए। 

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जामा मस्जिद की खासियत
स्थानीय निवासी अब्दुल अजिज व असद भाई बताते हैं, चंद्रघटा की शाही मस्जिद चंबल नदी के किनारे बनी है। सामने कोटा बैराज का विहंगम नजारा देखने को मिलता है। वहीं, चंबल हैंगिंग ब्रिज भी नजर आता है। मस्जिद का धार्मिक व रूहानी महत्व भी है। वर्तमान में यह मस्जिद दो मंजिला है। जिसमें करीब 4 से 5 हजार नमाजी एक साथ नमाज अदा कर सकते हैं। यहां रमजान का चांद दिखने के साथ ही एतकाफ शुरू हो जाता है, जो पूरे एक महीने तक जारी रहता है। यहां रोजे, नमाज के तरीके और शरीअत व सुन्नतों के आधार पर जीवन जीने की तालिम दी जाती है। मस्जिद के सामने चंबल होने से नमाजियों को सूकुन मिलता है। 

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