अमेरिका से कोटा पहुंचा गाना गाने वाला पक्षी नीलकंठी

मादा चिड़िया को रिझाने के लिए गाता है गीत, कजाकिस्तान से कोटा पहुंचे विदेशी मेहमान, गीतों को याद रखने की भी होती है क्षमता

अमेरिका से कोटा पहुंचा गाना गाने वाला पक्षी नीलकंठी

ब्लूथ्रोट को हिन्दी में नील कंठी पक्षी के नाम से जाना जाता है। इनकी आवाज बहुत ही मधुर होती है। वैसे तो ये पक्षी अकेले रहना ही पसंद करते हैं लेकिन मेटिंग के दौरान यह जोड़ा बनाते हैं और नर पक्षी मादा को रिझाने के लिए गाना गाते हैं।

कोटा।  अब तक आपने फिल्मों में हीरो को हिरोइन के लिए गाना गाते देखा होगा लेकिन असल जिंदगी में पक्षी भी अपनी प्रेमिका के लिए गीत गुनगुनाते हैं।  जीवन के अद्भुत नजारे इन दिनों शहर के अभेड़ा, आलनिया डेम, उम्मेदगंज पक्षी विहार, बरधा बांध व उदपुरिया में आम हो रहे हैं। यहां उत्तरी अमेरिका से आए ब्लू थ्रोट नामक पक्षी अपनी प्रेमिका को रिझाने के लिए मधुर आवाज में गाना गाते नजर आ रहे हैं। संगीत और स्वर की समझ रखने वाले ये पक्षी दिखने में जितने खूबसूरत हैं, उतनी ही दिलकश  वाणी के धनी भी हैं। दरअसल, उत्तरी अमेरिका के अलास्का, ईस्ट साइबेरिया व हिमालयी क्षेत्र से बड़ी संख्या में विदेशी मेहमान ब्लू थ्रोट पक्षियों ने शहर के विभिन्न इलाकों में डेरा जमाए हुए हैं। इसे स्थानीय भाषा में नील कंठी के नाम से भी जाने जाते हैं। फिलहाल इनकी संख्या करीब 5 दर्जन हैं। 

अब तक फिमेल बर्ड्स को रिझाने को गाता गाना
शर्मा के मुताबिक, ब्लूथ्रोट को हिन्दी में नील कंठी पक्षी के नाम से जाना जाता है। इनकी आवाज बहुत ही मधुर होती है। वैसे तो ये पक्षी अकेले रहना ही पसंद करते हैं लेकिन मेटिंग के दौरान यह जोड़ा बनाते हैं और नर पक्षी मादा को रिझाने के लिए गाना गाते हैं। ये स्वरोंं के उच्चारण के लिए प्रसिद्ध हैं। इनके द्वारा गाए जाने वाले गीत लम्बे व जटिल होते हैं, जो सीधे तौर पर मिलन से जुड़े होते हैं। सामान्य आवाज का उपयोग अपने समूह के सदस्यों को पुकारने के लिए अलार्म के रूप में करते हैं। इन पक्षियों के गीतों में इंसानों की तरह विविधता पाई जाती है। ये भी अपने गायन में स्वर व ताल का प्रयोग अच्छी तरह से करते हैं। इनमें गीतों को याद रखने की क्षमता भी होती है।

उत्तरी अमेरिका से जुड़ा कोटा का रिश्ता
बर्ड्स रिचर्सर हर्षित शर्मा ने बताया कि इन दिनों कोटा का रिश्ता हजारों किमी दूर उत्तरी अमेरिका से जुड़ चुका है। इसकी वजह इंसान नहीं बल्कि परिंदे हैं। अलास्का, साइबेरिया व रूस से आए दुर्लभ प्रजाति के ब्लूथ्रोट पक्षियों ने यहां डेरा डाल दिया है। वेटलैंड का विस्तार करने वाले खेतों व घास के मैदान में ब्लूथ्रोट किलोल करती दिख रही हैं। यहां धान के खेतों में कीडे-मकोड़े के रूप में इन्हें भरपूर भोजन भी मिल रहा है। इनकी मौजूदगी  से यहां का माहौल रंगीन हो गया है। 

एक दिन में 80 से 100 किमी भरते हैं उड़ान
बर्ड्स रिसर्चर अंशू शर्मा ने बताया कि नील कंठी पक्षियों का सितम्बर से आना शुरू हो जाता है, जो मार्च-अप्रेल तक जारी रहता है। अक्टूबर से फरवरी का समय मेटिंग का होता है।  मादा पक्षी एक बार में 2 से 4 अंडे देती हैं।  दोनों मिलकर अन्य पक्षियों से अंडों की रक्षा करते हैं। खास बात यह है कि ये पक्षी एक दिन में 80 से 100 किमी की उड़ान भरते हैं। 

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सर्दी से बचने को भारत आते हैं नील कंठी
नेचर प्रमोटर एएच जैदी ने बताया कि उत्तरी अमेरिका के अलास्का, हिमालयी क्षेत्र और ईस्ट साइबेरिया में अक्टूबर से बर्फबारी शुरू हो जाती है। जिससे बढ़ने वाली तीखी सर्दी से बचने के लिए ये पक्षी ऐसे स्थानों पर आशियाना बनाते हैं। 

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दूसरी चिड़ियाओं की आवाज की करते हैं हुबहु नकल
रिसर्चर अंशू बतातीं हैं,  यह दिखने में बेहद खूबसूरत होते हैं। इनकी खूबी यह है कि ये दूसरी चिड़िया की आवाज की नकल हुबहु कर लेतीं हैं। इसकी खुद की आवाज भी बहुत मधुर है।

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गले पर नीला व ब्राउन रंग के निशान इसकी पहचान
रिसर्चर हर्ष शर्मा ने बताया कि ब्लू थ्रोट पक्षी का आकार 12 से14 सेमी होता है। पूंछ को छोड़कर शरीर का ऊपरी भाग भूरे रंग का होता है। गले में सफेद, नीली, नारंगी, काली रंग की हार शृंगारनुमा संरचना बनी होती है। पूंछ के किनारों में लाल रंग के पैच भी दिखायी देते हैं। नर व मादा को गले के रंगों के आधार पर ही पहचाना जाता है। नर के गले पर नीले रंग की संरचना बनी होती है, जबकि, माद के गले पर ब्राउन कलर की बनावट होती है। यह पक्षी छोटे गौरैया के समान होते हंै।  

ऊंचाई से शिकार पर झपट्टा मारता रिवर टर्न
रिवर टर्न स्थानीय पक्षी है। यह 15 से 20 फीट ऊंचाई पर उड़ते हुए शिकार पर पैनी नजर रखता है। यह नदी-तालाब के आसपास ही अपना आशियाना बनाता है। मछलियां, मेंढक को भोजन बनाता है। वर्तमान में आलनिया डेम, किशोर सागर तालाब, अमेड़ा, राजपुरा तालाब सहित कई जगहों पर हजारों की संख्या में इन्हें देखा जा सकता है। 

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