चंबल की कराइयों में बसी जलमानुष की दुनिया, सबसे ज्यादा हमारे यहां

रावतभाटा से कोटा बैराज तक करीब 40 हैं ऊदबिलाव

चंबल की कराइयों में बसी जलमानुष की दुनिया, सबसे ज्यादा हमारे यहां

राजस्थान में सबसे ज्यादा उदबिलाव की संख्या कोटा चंबल में देखने को मिल रही है।

कोटा।  चंबल की वादियों में बाघ, घड़ियाल व मगरच्छों की तरह ऊदबिलाव की भी खूबसूरत दुनिया सजती है। दुलर्भ प्राणियों की श्रेणी में शामिल जलमानूष जितना शातिर है, उतना ही दिलेर भी है। बाढ़ से संघर्ष कर न केवल खुद को बल्कि अपना वजूद भी कायम रखा। अस्तित्व की जंग फतह कर चंबल को आशियाना बनाने वाला उदबिलाव अपनी तकदीर खुद लिख रहा है। मां चर्मण्यवती के महफूज आंचल में आज यह परिवार फल-फूल रहा है। दरअसल, राजस्थान में सबसे ज्यादा उदबिलाव की संख्या कोटा चंबल में देखने को मिल रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक रावतभाटा से कोटा तक करीब चालीस ऊदबिलाव परिवार के साथ रह रहे हैं। यहां की आबोहवा इतनी पसंद आ रही है कि इन्होंने यहां स्थाई बसेरा बना लिया और लगातार प्रजनन कर वंश वृद्धि कर रहे हैं।  

तीन साल में बढ़ी संख्या
बायोलॉजिस्ट उर्वषी शर्मा का कहना है, 2019 में इनकी संख्या 32 के लगभग थी, जो वर्तमान में बढ़कर करीब 40 हो गई है। चंबल का साफ पानी और भोजन की उपलब्धता से इनकी संख्या में इजाफा हुआ। कोटा में गरड़िया महादेव से गैपरनाथ के बीच, जवाहर सागर की डाउन स्ट्रीम तथा बैराज की अप स्ट्रीम के आसपास अच्छी संख्या में ऊदबिलाव की मौजूदगी है। इन्हें देखने व कैमरे में कैद करने के लिए जयपुर, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरू सहित देश के कई जिलों से पर्यटक आते हैं।  

परिवार का नहीं छोड़ते साथ
उवर्षी कहतीं हैं, ऊदबिलाव जितना बहादुर है, उतना ही परिवारवादी भी है। यह समूह में परिवार बनाकर रहते हैं। कोटा चंबल में करीब 4 परिवार रहते हैं। इनकी फैमिली में 6 से 8 सदस्यों की संख्या होती है। जब इनमें से कोई एक सदस्य खो जाता है तो उसे आवाज देकर ढूंढते हैं। यह विश्वास और एकता के सूत्र से बंधे होते हैं। जब परिवार के किसी सदस्य पर कोई आंच आती है तो उससे निपटने के लिए पूरा परिवार एकजुट हो जाता है और मदद के लिए सभी एक साथ दौड़ पड़ते हैं। 

चुलबुले- फुर्तीले होते हैं जलमानुष
नैचर प्रमोटर एएच जैदी कहते हैं, वर्ष 1998 में जवाहर सागर, जावरा, एकलिंगपुरा समेत कोटा बैराज से राणाप्रताप सागर तक इनकी काफी संख्या थी। वहीं, 70 के दशक में कुन्हाड़ी क्षेत्र चम्बल में भी दिखाई देते थे। ऊदबिलाव जल व थल दोनों ही जगह पर आराम से रह लेते हैं। इसकी लम्बाई करीब एक मीटर होती है। मछलियों का शिकार करना इन्हें विशेष पसंद होता है। खासियत यह है कि वयस्क होते ही यह जोड़ा बनाकर पेड़ों की जड़ों, चट्टानों के बीच मांद बनाकर अस्थाई घर बना लेते हैं। बच्चे होने के बाद ये वापस परिवार के साथ आ जाते हैं।

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क्यों कहते हैं जल मानुष
जैदी बताते हैं, यह मनुष्य की तरह खड़ा हो जाता है, तब इसका शरीर इंसान जैसा दिखता है। जल व थल दोनों में रहता है इसलिए इसे जल मानुष कहते हैं। यह चिकनी खाल तथा बालों वाला जानवर है। इसकी औसत लम्बाई करीब 15 से 17 इंच होती है। शिकार एवं इसके आवास की कमी के कारण अब यह जीव संकटग्रस्त जीवों की श्रेणी में आ गया है। उन्होंने बताया कि पूरी दुनिया में 13 तरह के ऊदबिलाव पाए जाते हैं। इसमें से तीन तरह के भारत में मिलते हैं। हमारे देश में कभी इनकी गिनती नहीं हुई है इसलिए इनका सही आंकड़े नहीं मिलते। 

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कोटा का शुभंकर किया घोषित 
रिसर्चर अंशु शर्मा ने बताया कहतीं हैं, राजस्थान सरकार ने 2016 में ऊदबिलाव को कोटा जिले का शुभंकर घोषित किया है ताकि लोगों को इस प्रजाति को संरक्षित करने के लिए जागरूक किया जा सके। यह मीठे पानी के जलीय आवास में पाया जाता है, जो मछलियों के शिकार करने का शौकीन होता है। आईयूसीएन की सूची में इसे खतरों के प्रति संवदेनशील प्रजाति माना है।

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13 में से एक प्रजाति राजस्थान में मिलती 
रिसर्चर हर्षित शर्मा ने बताया कि विश्व ऊदबिलाव दिवस प्रतिवर्ष मई के अंतिम बुधवार को मनाया जाता है। इसकी 13 प्रजातियों में से एक प्रजाति राजस्थान में पाई जाती है। जिसे नर्म फर वाले ऊदबिलाव के नाम से जाना जाता है। 1965 तक यह राजस्थान के बड़े भू-भाग पर पाया जाता था लेकिन इसकी बहुमूल्य खाल प्राप्त करने के लिए इसका शिकार किया जाने लगा। अब यह प्रजाति सिर्फ चंबल नदी के प्रवाह क्षेत्र में ही पाई जाती है। 

अवैध फिशिंग पर लगे प्रतिबंध
पगमार्क संस्था के संस्थापक देवव्रत हाड़ा का कहना है, ऊदबिलाव के संरक्षण के लिए अवैध मछली शिकार को रोकना जरूरी है। जहां-जहां यह पाए जाते हैं, वहां के क्षेत्र को संरक्षित किया जाना चाहिए, ताकि इनकी वंश वृद्धि हो सके। उन्होंने बताया कि गत दो वर्ष पहले किशोरपुरा स्थित चंबल नदी में मछुआरों की जाल में ऊदबिलाव का बच्चा फंस गया था, जिसे वन्यजीव प्रेमियों ने निकाल सुरक्षित नदी में छोड़कर बचाया। उन्होंने बताया कि उदबिलाव ही नहीं मगरमच्छ भी मछुआरों के जाल में फंसकर दम तोड़ देते हैं। वन विभाग को अवैध मछली शिकार रोक इनके प्राकृतिक आवास को सुरक्षित करना चाहिए। 

सुरक्षा लिए करता है हमला
बायोलॉजिस्ट सोहिल ताबिश ने बताया कि लोगों में यह भ्रांति है कि यह इंसानों को देखकर हमला कर देता है जबकि, ऐसा बिलकुल भी नहीं है। ऊदबिलाव सामाजिक प्राणी है। जब वह प्रजनन काल में होता है और अपने बच्चों की देखभाल कर रहा होता है, ऐसे समय में कोई व्यक्ति इनके नजदीक जाता है तो खतरा महसूस होने पर वह बच्चों की सुरक्षा के लिए हमला करता है। ऐसा अन्य वन्यजीव भी अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए करते हैं। 

ऐसे करते हैं अपनी ओर आकर्षित 
सोहिल बताते हैं, चम्बल की गहराई से निकलकर ऊदबिलाव किनारे पर स्थित चट्टानों तक आ जाते हैं। मछलियों का शिकार कर उन्हें उछालकर या फिर पानी में पीठ के बल लेटकर खाने का इनका अपना ही तरीका है। मछलियों का शिकार, खड़े होकर खतरे को देखना, पानी व चट्टानों पर आ जाना आकर्षित करता है।

नहीं उठाया फोन
खबर के सिलसिल में नवज्योति ने मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के डीएफओ बीजो रॉय व सीसीएफ एसपी सिंह को फोन किया था लेकिन दोनों ने ही फोन नहीं उठाया। 

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