संकट में भारतीय फुटबॉल : स्थगित हुई आईएसएल, आई लीग क्लबों के भविष्य पर भी सवाल आरयूएफसी चेयरमैन बोले- एक टीम तैयार करने में 10 करोड़ तक खर्च
बदले में मिलते सिर्फ 50 लाख, उसमें भी पेनल्टी कट जाती है
भारतीय फुटबॉल इन दिनों अभूतपूर्व संकट से गुजर रहा है।
जयपुर। भारतीय फुटबॉल इन दिनों अभूतपूर्व संकट से गुजर रहा है। इंडियन सुपर लीग (आईएसएल) के स्थगित होने के बाद अब देश के दूसरे प्रमुख टूनार्मेंट आई-लीग के अस्तित्व पर भी खतरे के बादल मंडराने लगे हैं। भारी निवेश, समर्पण और वर्षों की मेहनत के बावजूद क्लबों को न तो पर्याप्त वित्तीय सहायता मिल रही है और न ही भविष्य को लेकर कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश। ऐसे में कई क्लबों ने भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। टाक ने कहा कि यह समय केवल चिंता जताने का नहीं, बल्कि मिलकर कार्रवाई करने का है। अगर जमीनी स्तर पर खिलाड़ियों को तैयार करने वाले ये क्लब खत्म हो गए, तो भारतीय फुटबॉल का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान हालात में क्लब चलाना बेहद मुश्किल हो गया है।
भविष्य का कोई रोडमैप नहीं :
केके टाक ने अपने पत्र में सवाल किया कि जब आईएसएल का ही कोई स्पष्ट भविष्य नहीं है, तो आई-लीग के विजेता क्लब और उनके खिलाड़ियों के लिए आगे क्या स्कोप बचेगा? उन्होंने कहा कि कोई रोडमैप नहीं है, न ही प्रसारण योजनाएं या वाणिज्यिक सहयोग की स्पष्टता है। ऐसे में क्लबों का संचालन एक ऐसे गड्ढे में निवेश करने जैसा हो गया है, जहां से कोई रिटर्न नहीं दिखता।
क्लब नहीं बचे तो फुटबॉल नहीं बचेगी :
केके टाक ने आगाह किया कि देश में फुटबॉल की रीढ़ बने ये क्लब अगर नहीं बचे, तो पूरा फुटबॉल ढांचा चरमरा सकता है। उन्होंने बताया कि उन्होंने अन्य क्लब अधिकारियों से भी बात की है और जल्द ही ऑनलाइन या भौतिक बैठक कर आगे की रणनीति पर चर्चा की जाएगी। उनकी योजना है कि यह मुद्दा भारत सरकार, खेल मंत्रालय और प्रधानमंत्री तक पहुंचाया जाए, ताकि राष्ट्रीय स्तर पर कोई ठोस कार्ययोजना बने।
चिंतित हैं आई-लीग क्लब, आरयूएफसी ने उठाए सवाल :
राजस्थान यूनाइटेड फुटबॉल क्लब (आरयूएफसी) के चेयरमैन और उद्योगपति के.के. टाक ने एआईएफएफ और लीग आयोजकों को एक पत्र लिखते हुए मौजूदा हालात पर गहरी चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि एक सीजन में क्लबों को टीम तैयार करने, एकेडमी चलाने और स्थानीय फुटबॉल को जिंदा रखने के लिए 5 से 10 करोड़ रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं, जबकि बदले में मुश्किल से 50 लाख रुपये मिलते हैं। उसमें से भी 60 से 70 फीसदी राशि पेनल्टी के नाम पर काट ली जाती है।

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