सामुदायिक भावना के भवन : पुस्तकालय की आलमारियों में रखी किताबें धर्म, समाज, संस्कृति से जोड़ने का अभिनव प्रयास
मोतीडूंगरी दादाबाड़ी की स्थापना करीब एक सदी पहले दादा गुरु ने की थी
मंदिर के पास ही पुस्तकालय में जैन दर्शन एवं जीवन प्रबंधन का अध्ययन केन्द्र का संचालन होता है, इसमें शोधार्थी जैन दर्शन एवं जीवन प्रबंधन की बारीकियों को सीखते हैं।
जयपुर। श्री श्वेताम्बर जैन श्रीमाल सभा दादाबाड़ी मोतीडूंगरी रोड पर स्थित धर्मशाला का समृद्ध पुस्तकालय बरबस लोगों का ध्यान खींचता हैं।
पुस्तकालय में जैन समाज और इतिहास की आलमारियों में करीने से रखी पुस्तकें धर्म, समाज और संस्कृति से जोड़ने का सुन्दर एवं अभिनव प्रयास हैं। धर्मशाला में भगवान पार्श्वनाथ और दादा कुशल गुरुदेव का मंदिर बना हुआ है, जिसमें जैन धर्मावलम्बी पूजा-अर्चना करते हैं। यहां पर 38 एयरकंडीशन युक्त कमरे हैं, जो रियायती दरों पर उपलब्ध हैं।
आमतौर पर कमरे जैन धर्मावम्बियों को ही मिलते हैं, जिसमें देशभर से आने वाले जैन यात्री ठहरते हैं। दादाबाड़ी की स्थापना करीब एक सदी पहले दादा गुरु ने की थी, बाद में तीन अन्य दादा गुरुओं के मार्गदर्शन में संस्थान ने विस्तार पाया। कालखण्ड़ में लालचन्द बैराठी, मेहरचन्द धांधिया, दुलीचन्द टांक सहित अन्य लोगों ने इसके विकास के लिए भरसक प्रयास किए, उसी का परिणाम रहा कि आज यह संस्था पूरे देशभर में अपना अलग ही स्थान रखती हैं।
श्रीमाल सभा दादाबाड़ी में एक बड़ा एयरकंडीशनयुक्त हॉल बना हुआ है, जिसमें सभी प्रकार के मांगलिक कार्य होते हैं। तीये की बैठक के उठावने के लिए स्थान समाज बन्धुओं के लिए नि:शुल्क उपलब्ध हैं। दादाबाड़ी में चलने वाली भोजनशाला में सात्विक भोजन बनता है, जिसमें दोनों समय यात्रियों और आने-जाने वालों के लिए भोजन तैयार किया जाता है। जैन समाज के उठावने के बाद भोजन भी यहां तैयार होता है।
गर्मियों में चलती हैं धार्मिक कक्षाएं
नई पीढ़ी को धर्म, समाज और संस्कृति से जोड़ने के लिए हर वर्ष धार्मिक कक्षाओं का आयोजन होता है, जिसमें धर्म की जानकारी दी जाती हैं। विभिन्न प्रकार की बीमारियों की जांच के लिए मेडिकल कैम्प, महिला रोजगार मेला के आयोजन भी होते हैं।
जैन दर्शन औरजीवन प्रबंधन का अध्ययन केन्द्र
मंदिर के पास ही पुस्तकालय में जैन दर्शन एवं जीवन प्रबंधन का अध्ययन केन्द्र का संचालन होता है, इसमें शोधार्थी जैन दर्शन एवं जीवन प्रबंधन की बारीकियों को सीखते हैं।
पहले शहर के जैन मंदिरों में होते थे चातुर्मास
करीब दो-ढाई दशक पहले तक परकोटे के अन्दर के जैन मंदिरों में ही चातुर्मास के आयोजन होते थे, लेकिन बाद में जगह कम पड़ने पर करीब 27 साल से मोतीडूंगरी स्थित दादाबाड़ी में चातुर्मास के आयोजन होने लगे। बाद के वर्षों में कमरों, हॉल का निर्माण कराया गया और हरियाली का विशेष ध्यान रखा गया।
श्वेताम्बर जैन समाज का मोतीडूंगरी दादाबाड़ी सबसे पुराना स्थल है, जहां पर देश के कोने-कोने से आना वाला जैन परिवार एक बार ठहरने नहीं तो देखने के लिए जरूर आता है। समाज के ट्रस्टियों के सहयोग से इसका संचालन होता है, बहुत कम दरों पर किराए पर कमरे, हॉल और भोजन उपलब्ध कराया जाता है। साफ-सफाई और आध्यात्मिक वातावरण यहां की पहचान हैं।
-मनोज धांधियां, अध्यक्ष, श्री श्वेताम्बर जैन श्रीमाल सभा दादाबाड़ी, मोतीडूंगरी रोड, जयपुर
सब एक के लिए, एक सभी के लिए इस सिद्धांत पर दादाबाड़ी का संचालन होता है, हमारे पूर्वजों ने इसे आध्यात्मिक शक्ति केन्द्र के रूप में उभारा है,उसे हम भी अपनी क्षमता के अनुसार सहयोग कर रहे हैं।
-धर्मेन्द्र टांक, सचिव, श्री श्वेताम्बर जैन श्रीमाल सभा दादाबाड़ी, मोतीडूंगरी रोड, जयपुर

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