कम पानी वाले उपलब्ध क्षेत्रों में बांस उत्पादन, उससे होने वाले लाभों पर हुआ विमर्श 

महाराष्ट्र से आए बांस उत्पादन और विपणन विशेषज्ञों ने दिया प्रस्तुतिकरण

कम पानी वाले उपलब्ध क्षेत्रों में बांस उत्पादन, उससे होने वाले लाभों पर हुआ विमर्श 

राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने राजस्थान के काश्तकारों के लिए बांस उत्पादन की संभावनाओं पर प्रभावी योजना बनाकर कार्य किए जाने के निर्देश दिए हैं।

जयपुर। राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने राजस्थान के काश्तकारों के लिए बांस उत्पादन की संभावनाओं पर प्रभावी योजना बनाकर कार्य किए जाने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि अधिकारी कम पानी वाले क्षेत्रों की प्रदेश की उपलब्ध भूमि पर बांस उगाने और इससे जुड़े उत्पादन की विपणन कार्य योजना तैयार करें ताकि इससे काश्तकारों को अधिक से अधिक आर्थिक लाभ मिल सके।

 बागडे शुक्रवार को राजभवन में ग्रामीण आजीविका सृजन में बांस की भूमिका विषयक विशेष बैठक में संबोधित कर रहे थे। महाराष्ट्र में बांस से जुड़े उत्पादों से काश्तकारों को होने वाले लाभ और इसके बढ़ते पर्यावरण और आर्थिक महत्व को देखते हुए राजस्थान में भी इस संबंध में संभावनाओं के मद्देनजर यह बैठक आयोजित की गई थी। बैठक में बांस उत्पादन विशेषज्ञ और महाराष्ट्र मुख्यमंत्री टास्क फोर्स, पर्यावरण एवं सतत विकास के अध्यक्ष पाशा पटेल को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था।

राज्यपाल बागडे ने कहा कि राजस्थान में कम पानी वाले उपलब्ध क्षेत्रों में बांस की खेती को बढ़ावा देने की योजना पर विशेष रूप से कार्य किया जाए। उन्होंने कहा कि बांस लगाने से काश्तकारों को आर्थिक लाभ ही नहीं होगा, प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण के लिए भी तेजी से कार्य हो सकेगा।

राज्यपाल ने बांस लगाने के लिए काश्तकारों को प्रोत्साहित करने, उनको प्रशिक्षित करने और विशेष क्षेत्रों में बांस लगाने के सफल प्रयोग कर उन्हें किसानों को दिखाए जाने की व्यवस्था करने के लिए अधिकारियों को निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि राजस्थान की गर्म जलवायु के लिए बांस लगाना बहुत उपयोगी होगा। उन्होंने बड़े स्तर पर उपलब्ध भूमि का उपयोग बांस लगाने के लिए करने के लिए मानसिकता तैयार किए जाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि गरीब काश्तकारों को इसके लिए तैयार किया जाए। इस हेतु उन्हें बांस लगाने के बदले अनाज और दूसरी अनुदान योजनाओं से प्रेरित करने की बात कही।

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बागडे ने कहा कि बांस घास की तरह तेजी से बढ़ता है। इसलिए भारत सरकार ने कानून में बदलाव कर वन भूमि के पौधों की बजाय इसे घास श्रेणी में रखा है ताकि इसका आर्थिक रूप में किसानों को लाभ मिल सके। इसके निर्यात से राष्ट्र का आर्थिक विकास हो सके। उन्होंने राजस्थान में बांस उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ ही बांस उत्पादन में विविधता के लिए भी प्रशिक्षण प्रदान कर काश्तकारों को प्रोत्साहित किए जाने का आह्वान किया।

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पर्यावरण एवं सतत विकास, मुख्यमंत्री टास्क फोर्स, महाराष्ट्र  के अध्यक्ष पाशा पटेल ने कहा कि राजस्थान जैसे गर्म जलवायु वाले क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण और काश्तकारों के आर्थिक लाभ की दृष्टि से बांस का उत्पादन वरदान साबित हो सकता है। उन्होंने कहा कि चीन में 1980 में बांस उत्पादन प्रारंभ हुआ और आज इससे वह बहुत बड़े स्तर पर आर्थिक लाभ ले रहा है। वहां 5 मिलियन हेक्टर में बांस उत्पादन हो रहा है जबकि भारत में 10 मिलियन हेक्टेयर में बांस होने के बावजूद इसके विपणन और उत्पादों की विविधता में कमी के कारण हम इसका आर्थिक लाभ नहीं ले पा रहे हैं। उन्होंने बांस को हरित भारत की दृष्टि से भी बहुत उपयोगी बताया तथा कहा कि भारत सरकार ने जब से इसे घास श्रेणी में रखा है तब से महाराष्ट्र में इस दिशा में तेजी से विकास हुआ है। विश्वभर के देशों में बांस के निर्माण कार्यों और फर्निचर के साथ अन्य उत्पादों में हम अग्रणी हुए हैं। उन्होंने जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान के दौर में राजस्थान में बांस उत्पादन की संभावनाओं पर कार्य किए जाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में किसानों को नरेगा के तहत बांस उत्पादन के प्रोत्साहन हेतु 7 लाख का तक का अनुदान दिया जाता है। इसी तर्ज पर राजस्थान में काम होता है तो इसके भविष्य में बहुत अच्छे परिणाम आ सकते हैं।

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अतिरिक्त मुख्य सचिव श्रेया गुहा ने कहा कि बांस उत्पादन की संभावनाओं पर कार्य किया जाएगा साथ ही प्रदेश में राजीविका के तहत इस क्षेत्र में प्रशिक्षण के लिए भी कदम उठाए जाएंगे। अतिरिक्त मुख्य सचिव आनंद कुमार ने भी बांस उत्पादन की संभावनाओं पर कार्य कर किसानों को लाभान्वित किए जाने की बात कही। वन विभाग द्वारा इस दौरान बांस उत्पादन के राज्य के प्रमुख क्षेत्रों और बांस उत्पादन से होने वाले राजस्व लाभ के बारे में बताया गया। पद्मश्री श्यामसुंदर पालीवाल ने चारागाह भूमि पर बांस लगाने और बांस उत्पादन में विविधता को बढ़ावा दिए जाने की आवश्यकता जताई। बांस विशेषज्ञ और टाटा ट्रस्ट के संजीव कार्पे ने बांस के उत्पादों के निर्यात के साथ इससे होने वाले लाभों के बारे में प्रस्तुतिकरण  दिया।

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