वयस्क होकर शेल्टर होम से बाहर निकले युवाओं को पहचान का संकट, हाईकोर्ट ने लिया प्रसंज्ञान

इन युवाओं के कल्याण के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी मुख्य सचिव से मांगी

वयस्क होकर शेल्टर होम से बाहर निकले युवाओं को पहचान का संकट, हाईकोर्ट ने लिया प्रसंज्ञान

अदालत ने कहा कि सही नीतियों से न केवल इन युवाओं को जीवित रहने, बल्कि फलने-फूलने के लिए सशक्त बनाया जा सकता है। 

जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने वयस्क होने के बाद शेल्टर होम छोड़ने वाले युवाओं के लिए कोई प्रावधान नहीं होने पर स्वप्रेरणा से प्रसंज्ञान लिया है। इसके साथ ही अदालत ने केन्द्र सरकार, मुख्य सचिव, महिला एवं बाल विकास विभाग, अलवर कलेक्टर, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, अलवर और यूनिसेफ के प्रदेश कार्यालय को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। अदालत ने केन्द्र सरकार के बाल विकास विभाग और राज्य के मुख्य सचिव से रिपोर्ट पेश कर बताने को कहा है कि ऐसे युवाओं के कल्याण के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं। जस्टिस अनूप कुमार ढंड ने यह आदेश प्रकरण में स्वप्रेरित प्रसंज्ञान लेते हुए दिए। अदालत ने अलवर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव और कलेक्टर को स्थानीय बालिका गृह का दौरा कर जांच करने को कहा है कि वहां अनुदान क्यों रोका गया है। अदालत ने कहा कि सही नीतियों से न केवल इन युवाओं को जीवित रहने, बल्कि फलने-फूलने के लिए सशक्त बनाया जा सकता है। 

अदालत ने कहा कि हम इस बात से दुखी हैं कि हजारों युवा जो शेल्टर होम में पले-बढ़े हैं, उन्हें 18 साल की उम्र होने पर बिना किसी पहचान, स्थायी पते और बिना सहारे बाहर की दुनिया में धकेल दिया जाता है। इस दौरान उनके पास न आधार कार्ड और न ही वोटर कार्ड सहित कोई पहचान का दस्तावेज होता है। अदालत ने कहा कि यूनिसेफ के अनुसार देश में करीब तीस मिलियन बच्चे अनाथ हैं। एसओएस बाल ग्राम की 2011 की रिपोर्ट के अनुसार देश की बाल आबादी के चार फीसदी बच्चे अनाथ हैं। वहीं प्रदेश में 18 साल से कम उम्र के 46 फीसदी से अधिक लोग हैं। अदालत ने कहा कि बाल विकास मंत्रालय के अनुसार देश भर में इन केन्द्रों में करीब चार लाख बच्चे रह रहे हैं। उनमें से कई बच्चों के आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने का खतरा है।

महिला एवं बाल मंत्रालय बच्चों के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए नोडल एजेंसी का काम करता है और संसद ने भी इस संबंध में कई कानून बनाए हैं, लेकिन कानूनों और योजनाओं के खराब क्रियान्वयन के कारण ऐसी स्थिति हो गई है कि इन केन्द्रों और बाहर निकलने वाले युवाओं को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अदालत ने कहा कि उन्हें अलवर बालिका गृह में रहने वाले बच्चों का पत्र मिला है। जिसमें सरकारी अधिकारियों की निष्क्रियता के कारण उन्हें अनुदान नहीं मिलने से गंभीर चुनौतियों के बारे में बताया गया है। इसके साथ ही अधिकारियों पर शोषण के भी आरोप हैं। सरकार को इन बच्चों के कल्याण के लिए प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिए, ताकि इनका भविष्य उज्ज्वल हो सके। 

 

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