नयनों को नयनों की आस : ढाई लाख लोगों को आंखों की रोशनी मिलने का इंतजार, नेत्रदान का प्रतिशत बढ़े, तो अंधेरे में जी रहे लोग फिर से देख सकें दुनिया के रंग

जागरूकता के अभाव में देश ही नहीं बल्कि प्रदेश में भी नेत्रदान का प्रतिशत कम

नयनों को नयनों की आस : ढाई लाख लोगों को आंखों की रोशनी मिलने का इंतजार, नेत्रदान का प्रतिशत बढ़े, तो अंधेरे में जी रहे लोग फिर से देख सकें दुनिया के रंग

आंखें प्रकृति का दिया हुआ अनमोल तोहफा होती हैं। इन्हीं की बदौलत व्यक्ति दुनिया की खूबसूरती को देख पाता है

जयपुर। आंखें प्रकृति का दिया हुआ अनमोल तोहफा होती हैं। इन्हीं की बदौलत व्यक्ति दुनिया की खूबसूरती को देख पाता है। एक समय था जब किसी की आंखों में रोशनी नहीं होती या किसी बीमारी के कारण आंखें खराब हो जाती थीं तो उसके जीवन में अंधेरा पसर जाता था, लेकिन नेत्रदान करके कोई भी व्यक्ति ऐसे लोगों को आंखों की रोशनी वापस दे सकता है। हालांकि जितने लोगों को आंखों की जरूरत है उसके मुकाबले नेत्रदान का प्रतिशत हमारे देश में काफी कम है। देशभर की बात करें तो करीब ढाई लाख लोग कॉर्निया ट्रांसप्लांट के इंतजार में हैं, लेकिन इसके अनुपात में नेत्रदान कम होने से इन लोगों का इंतजार बढ़ता जा रहा है। राजस्थान में भी हजारों लोग कॉर्निया ट्रांसप्लांट के लिए वैटिंग में हैं। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह जागरुकता की कमी है। यही वजह है कि लोग नेत्रदान करने से डरते हैं। कॉर्निया खराब होने के कारण अंधेरे में जी रहे लोगों के जीवन में उजाला लाने का काम कर रही है आई बैंक सोसायटी आॅफ राजस्थान। जिसने फरवरी 2002 में स्थापना से लेकर मई 2025 तक 25,570 लोगों को कोर्निया ट्रांसप्लांट कराया है। 

16 हजार से ज्यादा कॉर्निया ट्रांसप्लांट
पूर्व आईएएस और आई बैंक सोसाइटी के अध्यक्ष बीएल शर्मा ने बताया कि 23 वर्षों में आई बैंक सोसायटी की ओर से कुल 25,570 कोर्निया दान में प्राप्त किए गए। इनमें से 16, 369 कोर्निया ट्रांसप्लांट किए गए। कुछ कोर्निया खराब होने या क्वालिटी अच्छी नहीं होने के कारण ट्रांसप्लांट नहीं किए जाते हैं। फिर भी इनकी उपयोगिता दर 64 प्रतिशत रही है जो अखिल भारतीय औसत 45 प्रतिशत से अधिक और अंतरराष्ट्रीय प्रतिशत के बराबर है। 

प्रदेश में यहां आई बैंक
वर्तमान में आई बैंक सोसायटी द्वारा जयपुर, अजमेर, जोधपुर, उदयपुर, भीलवाड़ा, कोटा, अलवर, पाली, बूंदी, चितौड़गढ़, दौसा, भरतपुर, बीकानेर और श्रीगंगानगर में सेन्टर्स काम कर रहे हैं। इनके अलावा आई बैंक सोसाइटी द्वारा ब्यावर, डीग, कोटपुतली, खैरथल, सलुम्बर, बारां, झालावाड़ और हनुमानगढ़ जिलों को भी कॉर्निया कलेक्शन कार्य से जोड़ा गया है।

सरकारी और निजी अस्पतालों में भेजे जाते हैं कॉर्निया
सोसाइटी मृतकों के परिजनों द्वारा दान किए गए कॉर्निया आई बैंक के माध्यम से राजस्थान के एसएमएस अस्पताल सहित अन्य सरकारी व निजी अस्पतालों में और मांगे जाने पर अन्य राज्यों को ट्रांसप्लांट के लिए भिजवाए जाते हैं। राजस्थान में कॉर्निया भेजने के बाद आई बैंक में जो कोर्निया शेष रह जाते हैं उनको नष्ट होने से बचाने के लिए केन्द्रीय वितरण प्रणाली के तहत देश के अन्य शहरों के अस्पतालों को मांग के अनुसार भेज दिए जाते हैं।

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राज्य में लागू है राइट टू साइट पॉलिसी
राज्य में गहलोत सरकार के समय राइट टू साइट पॉलिसी लागू की गई थी। इसके तहत यदि राज्य के सरकारी अस्पतालों में प्रशिक्षित डॉक्टर, आवश्यक उपकरण एवं संसाधनों के साथ अन्य पेरा मैडिकल स्टाफ  उपलब्ध हो जाए तो नेत्रदान से प्राप्त अतिरिक्त कॉर्निया सीडीएस प्रणाली के तहत राज्य से बाहर अन्य शहरों को नहीं भेज कर राजस्थान के लोगों को लाभान्वित किया जा सकता है।
-लक्ष्मण बोलिया, प्रवक्ता, आई बैंक सोसाइटी ऑफ राजस्थान

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देश में 350 रजिस्टर्ड आई बैंक
शर्मा ने बताया कि देशभर में 350 रजिस्टर्ड आई बैंक हैं, लेकिन उनमें से केवल 150 आई बैंक ही सक्रिय हैं। इनमें से भी राजस्थान के आई बैंक सहित केवल 11 आई बैक ही हैं जो आई बैकिंग के क्षेत्र में विश्व की प्रमुख संस्था साईट लाइफ  इन्टरनेशनल द्वारा प्रमाणित हैं। 

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नेत्रदान को लेकर कुछ जरूरी बातें
किसी भी उम्र या लिंग का कोई भी व्यक्ति आंखें दान कर सकता है। यहां तक कि मोतियाबिंद का आॅपरेशन करा चुके, चश्मा पहनने वाले, बीपी या डायबिटीज के मरीज भी नेत्रदान कर सकते हैं। रेटिनल या ऑप्टिक नर्व की बीमारी के कारण दिव्यांग लोग भी नेत्रदान कर सकते हैं। 

नेत्रदान में आंखों का कॉर्निया दान किया जाता है। यह हमें दिखाई देने वाली आंख के सामने की बाहरी पारदर्शी परत होती है। कॉर्निया के जरिए ही पुतली को देखा जा सकता है। कॉर्निया प्रकाश को रेटिना पर भेजता है, वहां से इसकी तस्वीर मस्तिष्क को भेजी जाती है और इस तरह हम सभी चीजों को देख और पहचान पाते हैं।

मृत्यु के बाद जितना जल्दी हो सके आंखें दान की जानी चाहिए, लेकिन अधिकतम छह घंटे के अंदर कॉर्निया निकाला जा सकता है। इसके लिए डॉक्टरों की टीम मृतक के पास स्पेशल कंटेनर लेकर जाती है। कॉर्निया निकालकर उसे एक सॉल्यूशन जिसे कानिसोल कहते हैं, में लैब में प्रिजर्व किया जाता है और फिर उसे तत्काल कॉर्निया बैंक को पहुंचाया जाता है। 

दान किए गए कॉर्निया को लंबे समय तक नहीं रखा सकता। इसे अधिकतम सात दिन के अंदर किसी न किसी को ट्रांसप्लांट करना ही होता है। जितना जल्दी कॉर्निया प्रत्यारोपित होगा, उतना ही बेहतर रिजल्ट मिलेगा। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि अब आधुनिक सॉल्यूशन के जरिए 14 से 15 दिन भी कॉर्निया प्रिजर्व किया जा सकता है।

Tags: eye  

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