जेल में बंदियों ने प्रवासी राजस्थानी दिवस पर बनाई अद्भुत सैंड आर्ट, संस्कृति और गौरव का अनूठा प्रदर्शन

चारदीवारी में रचनात्मकता का उजाला

जेल में बंदियों ने प्रवासी राजस्थानी दिवस पर बनाई अद्भुत सैंड आर्ट, संस्कृति और गौरव का अनूठा प्रदर्शन

केंद्रीय कारागृह श्यालावास में बंदियों के भीतर छिपी रचनात्मक ऊर्जा मंगलवार को एक भव्य कलाकृति के रूप में सामने आई। जेल अधीक्षक पारस जांगिड की प्रेरणा से बंदियों ने प्रथम प्रवासी राजस्थानी दिवस 10 दिसंबर 2025 को समर्पित करते हुए जेल परिसर के उद्यान क्षेत्र में एक अत्यंत सुंदर और प्रतीकात्मक सैंड आर्ट का निर्माण किया। यह कलाकृति राजस्थान की समृद्ध संस्कृति, उसके जीवंत रंगों और गौरवशाली इतिहास को एक अनूठे रूप में प्रदर्शित करती है।

जयपुर। दौसा की विशिष्ट केंद्रीय कारागृह श्यालावास में बंदियों के भीतर छिपी रचनात्मक ऊर्जा मंगलवार को एक भव्य कलाकृति के रूप में सामने आई। जेल अधीक्षक पारस जांगिड की प्रेरणा से बंदियों ने प्रथम प्रवासी राजस्थानी दिवस 10 दिसंबर 2025 को समर्पित करते हुए जेल परिसर के उद्यान क्षेत्र में एक अत्यंत सुंदर और प्रतीकात्मक सैंड आर्ट का निर्माण किया। यह कलाकृति राजस्थान की समृद्ध संस्कृति, उसके जीवंत रंगों और गौरवशाली इतिहास को एक अनूठे रूप में प्रदर्शित करती है। इस आकर्षक सैंड आर्ट में दिवस के लोगो के अनुरूप राजस्थान की पहचान माने जाने वाली पारंपरिक झरोखा शैली को प्रमुखता से उकेरा गया है। इसके साथ ही कलाकृति में राज्य का स्पष्ट नक्शा, मरुभूमि के जहाज कहे जाने वाले ऊँटों की आकृतियाँ तथा अनेक रंग-बिरंगे सांस्कृतिक प्रतीकों को अत्यंत बारीकी और कुशलता से दर्शाया गया है। बंदियों ने इस कलाकृति के निर्माण के लिए मिट्टी, प्राकृतिक रंगों और स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सामग्री का ही उपयोग किया, जो उनकी रचनात्मकता और सकारात्मक परिवर्तन की भावना को दर्शाती है।

सैंड आर्ट का विमोचन करते हुए उप निदेशक उद्योग पीयूष अग्रवाल ने बंदियों के प्रयास की सराहना की। उन्होंने कहा कि यह कलाकृति राजस्थान की अमूल्य धरोहर, मरु-संस्कृति और अपनी मिट्टी से जुड़े गर्व को सुंदर रूप में प्रस्तुत करती है। अग्रवाल ने कला को पुनर्वास का एक सशक्त माध्यम बताते हुए जोर दिया कि ऐसे रचनात्मक प्रयास बंदियों के जीवन में नया आत्मविश्वास और सम्मान की भावना विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मूर्तिकार राजेश शर्मा, संदीप अग्रवाल, महेश शाह और राजाराम जैसे बंदियों ने रंग योजना, डिजाइन और उभार तकनीक पर कई दिनों तक अथक मेहनत की, जिसके परिणाम स्वरूप यह अद्भुत कलाकृति बन पाई। यह सृजनात्मक पहल न सिर्फ प्रवासी राजस्थानी दिवस को एक सुंदर श्रद्धांजलि है, बल्कि यह एक सशक्त संदेश भी देती है कि यदि सही दिशा और प्रेरणा मिले, तो हर व्यक्ति अपनी कलात्मक ऊर्जा को समाजोपयोगी बनाकर एक नई राह पर चल सकता है

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