जयपुर अब 27 जोन में बंटा : सबसे छोटा जोन सिर्फ दो किमी में, सबसे बड़ा जोन बस्सी से आमेर तक फैला
प्रशासनिक ढांचे में ऐतिहासिक बदलाव किया जा रहा
राजधानी जयपुर अब '18 जोन वाले शहर' की पहचान छोड़कर '27 जोन वाले महानगर' के रूप में नई प्रशासनिक संरचना की ओर बढ़ रहा है।
जयपुर। राजधानी जयपुर अब '18 जोन वाले शहर' की पहचान छोड़कर '27 जोन वाले महानगर' के रूप में नई प्रशासनिक संरचना की ओर बढ़ रहा है। जयपुर विकास प्राधिकरण (खऊअ) की सीमा विस्तार के साथ, इसके प्रशासनिक ढांचे में ऐतिहासिक बदलाव किया जा रहा है। अब शहर को 27 जोन में बाँटा गया है, जिन्हें 10 रीजनल जोन में समायोजित कर क्षेत्रीय कार्यालयों के अधीन संचालित किया जाएगा, लेकिन इस नई जोन व्यवस्था में जो सबसे दिलचस्प बात सामने आई है, वह है-जोन नंबर 3 और जोन नंबर 13 की टकराव जैसी भौगोलिक असमानता।
जोन नंबर 3 महज 2 वर्ग किलोमीटर का है, जिसमें लालकोठी जैसे हाई-प्रोफाइल क्षेत्र शामिल हैं। वहीं, जोन नंबर 13 596 वर्ग किलोमीटर में फैला है, जो बस्सी, भानपुरा कलां, और घटवाड़ी जैसे ग्रामीण-शहरी मिश्रित क्षेत्रों को समेटे हुए है। इसमें आमेर और जमवारामगढ़ के कुछ गांव भी हैं।
कुछ और चौंकाने वाले आंकड़े :
सबसे बड़ा जोन : जोन 13-596 वर्ग किमी
सबसे छोटा जोन : जोन 3-2 वर्ग किमी
माधोराजपुरा (जोन 22) : 370 वर्ग किमी में अकेले ग्रामीण विकास का बड़ा क्षेत्र शामिल
चाकसू व कोटखावदा (जोन 23) : दो तहसीलों के 7 से अधिक राजस्व वृत इसमें समाहित
क्या बदलेगा आम नागरिक के लिए ?
नई जोनिंग व्यवस्था का सीधा असर नागरिकों की जमीन, भवन अनुमति, अवैध निर्माण, जलनिकासी और परिवहन योजना जैसे मुद्दों पर पड़ेगा। खास बात यह है कि रीजनल जोन स्तर पर काम होने से, शिकायतों का निस्तारण अब और अधिक स्थानीय और तेज होगा।
नया जोनिंग सिस्टम क्यों चर्चा में है ?
जोन 3 बनाम जोन 13 की असमानता : लालकोठी जैसे पॉश एरिया को मिले छोटे जोन का विशेष दर्जा।
ग्रामीण जयपुर का उभार : बस्सी, आमेर, जमवारामगढ़, फागी और दूदू जैसे क्षेत्रों को शामिल कर खऊअ ने अपनी पहुंच को व्यापक किया है।
रीजनल ऑफिस की भूमिका : अब दस कार्यालयों के जरिए काम होगा — जिससे क्षेत्रीय जवाबदेही और जमीनी क्रियान्वयन बेहतर होगा।
जोनिंग के पीछे की सोच :
इस संरचनात्मक बदलाव के पीछे खऊअ की मंशा यह है कि प्रशासनिक पहुंच को जमीनी स्तर तक आसान बनाया जाए। नए जोन इस तरह से डिजाइन किए गए हैं कि शहरी और ग्रामीण विकास के संतुलन को बेहतर बनाया जा सके।
एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, "नए जोन केवल विभाजन नहीं, बल्कि दक्षता की ओर एक कदम हैं। इससे योजना निर्माण, निगरानी और विकास परियोजनाओं के निष्पादन में तीव्रता आएगी।"
क्या यह बदलाव जयपुर के विकास को नई दिशा देगा या नए विवादों को जन्म देगा ?
यह बदलाव कितना सफल होगा, यह इस पर निर्भर करेगा कि योजनाओं को धरातल पर किस तरह से उतारा जाता है। लेकिन फिलहाल इतना जरूर है कि जयपुर एक नई प्रशासनिक करवट ले चुका है — और वह भी पूरे जोश और गूंज के साथ।
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