महिला एवं बाल विकास ने वित्त विभाग को भेजा प्रस्ताव, निकायों से अलग से डोर-टू-डोर कलेक्शन की योजना

सैनिटरी नैपकिन से संक्रमण-प्रदूषण का खतरा, निस्तारण की अलग से तैयारियां

महिला एवं बाल विकास ने वित्त विभाग को भेजा प्रस्ताव, निकायों से अलग से डोर-टू-डोर कलेक्शन की योजना

इंसीनेटरर्स मशीनें बड़ी संख्या में खरीदने सार्वजनिक स्थानों पर लगाने का भी प्लान।

जयपुर। महिलाओं को माहवारी के दौरान संक्रमण से बचाने का काम कर रहा सैनिटरी नैपकिन उपयोग के बाद संक्रमण फैला सकता है। ऐसे में अब इसके निस्तारण के लिए महिला एवं बाल विकास बीते सालों में इसके निस्तारण की नीति को अमलीजामा पहनाने की तैयारी कर रहा है। 
विभाग ने इसके लिए वित्त विभाग को इसके निस्तारण के लिए पैसे मंजूर करने का प्रस्ताव भेजा है। राशि मंजूर होने के बाद विभाग निकायों के जरिए इसके डोर टू डोर कलेक्शन की अलग व्यवस्था करेगा। प्रदेश में वर्तमान में करीब 150 करोड़ सैनिटरी नैपकिन महिलाएं उपयोग में ले रही है। लेकिन इन्हें सामान्य कचरे के साथ ही निस्तारित किया जा रहा है। जिसके चलते कई गंभीर बीमारियां फैलने का खतरा हमेशा रहता है। साथ ही पर्यावरण पर भी इसके गंभीर प्रभाव पड़ते हैं। इसलिए अब इसके बचाव पर काम शुरू होने जा रहा है। संभवत: इसके निस्तारण को कचरा वाहनों में अलग से एक चैम्बर्स इसके लिए रिजर्व किया जाएगा। महिला एवं बाल विभाग अपने मद से इसके लिए निकायों को पैसा देगा। निस्तारण को इंसीनरेटर मशीनें भी खरीदी जाएंगी।

जागरूकता अभियान भी चलेगा
जानकारी के अनुसार महिला एवं बाल विकास विभाग इसके निस्तारण को जागरूकता अभियान भी चलाएगा। ताकि इंसीनरेटर मशीनों से इसका निस्तारण हो सके। बायोडिग्रेडेबल नैपकिन को बढ़ावा दिया जाएगा। महिलाओं और स्कूलों, ग्रामीण क्षेत्रों में अवेयरनेंस एजुकेशन कार्यक्रम भी चलेंगे। 

संक्रमण पर ये हो सकती हैं गंभीर बीमारियां
यूज किए गए सैनिटरी नैपकिन में रक्त और बैक्टीरिया होते हैं जो मक्खियों, कुत्तों और अन्य जानवरों के संपर्क से मानव तक पहुंचने पर संक्रामक रोग जैसे हेपेटाइटिस, टिटनेस, और अन्य बैक्टीरियल वायरल संक्रमण फैला सकते हैं। इससे त्वचा रोग, सांस की बीमारी भी हो सकती है। दूषित हुआ पानी पीने से पेट की बीमारियां, कैंसर और हार्मोनल असंतुलन हो सकता है।

पर्यावरणीय प्रदूषण
नैपकिन निर्माण में प्लास्टिक, सुपरअब्सॉर्बेंट पॉलिमर्स, और सिंथेटिक फाइबर का भी उपयोग होता है। जो बायोडिग्रेडेबल नहीं होते। ऐसे में इसको यूज के बाद सामान्य प्रक्रिया से नष्ट होने में अनुमानत: पांच सौ साल तक लग सकते हैं। ऐसे में खुले में फेंकने, नाली-नालों में बहाने, सीवरेज सिस्टम में डालने पर इससे  मिट्टी, पानी और भूजल के दूषित होने की आशंका रहती है। इसे जलाने पर इसमें से डाईऑक्सिन और फ्यूरान जैसे जहरीले रसायन वायु प्रदूषण करते हैं।

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निस्तारण की नीति बीते सालों में बनी है। विभाग ने वित्त विभाग को प्रस्ताव भेजा है। निकायों के माध्यम से ही निस्तारण का प्लान तैयार कर रहे हैं।
-महेन्द्र सोनी, सचिव, महिला एवं बाल विकास विभाग। 

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