मेले में हरदिल अजीज है सोफ्टी और हाथी जाम

राष्ट्रीय दशहरा मेला : कोटा की प्रसिद्ध कचौरी का मेले में नहीं मिल रहा स्वाद, 47 साल पहले दिल्ली से पहली बार कोटा आई थी सोफ्टी आइसक्रीम

मेले में हरदिल अजीज है सोफ्टी और हाथी जाम

कोटा में पहले जहां सोफ्टी को कोई नहीं जानता था। उसकी शुरुआत दशहरा मेले से हुई है। मेले में ही सबसे पहले दिल्ली के व्यापारी ने सोफ्टी की दुकान लगाई थी। वर्ष 1975-76 में पहली बार मेले में सोफ्टी की एक दुकान लगी थी। वह कई सालों तक एक ही रही। उसके बाद दूसरी दुकानें लगना शुरू हुई। दशहरा मेले में हाथी जाम भी अधिकतर लोगों की पसंद बनी हुई है। शुरुआत में एक हाथी जाम एक पाव से आधा किलो तक का होता था।

कोटा । कोटा के दशहरा मेले को भरते हुए 129 साल हो गए हैं। लेकिन मेले में आज भी घूमने जाने वाले अधिकतर लोगों की पहली पसंद सोफ्टी और हाथी जाम रहता है। शुरुआत में लोग सोफ्टी और हाथी जाम खाने के लिए मेले में जाया करते थे। मेलों में पहले अधिकतर लोग ऐसे चीजें खरीदने जाते थे जो सामान्य तौर पर दुकानों पर नहीं मिलती थी। मेलों में देशभर के दुकानदार आते थे। जहां हर तरह के चीजें आसानीे से मिल जाती थी। लेकिन अब शायद ही कोई ऐसी चीज होगी जो मेले में है और कोटा शहर में नहीं मिल रही हो। समय के साथ आए बदलाव का असर खाने-पीने की चीज व स्वाद में भी देखने को मिल रहा है।  साथ हीउस पर महंगाई की मार भी पड़ी है। कोटा में पहले जहां सोफ्टी को कोई नहीं जानता था। उसकी शुरुआत दशहरा मेले से हुई है। मेले में ही सबसे पहले दिल्ली के व्यापारी ने सोफ्टी की दुकान लगाई थी। वर्ष 1975-76 में पहली बार मेले में सोफ्टी की एक दुकान लगी थी। वह कई सालों तक एक ही रही। उसके बाद दूसरी दुकानें लगना शुरू हुई। 

कोटा में सोफ्टी के सबसे पुराने व्यवसायी श्यामलाल वाष्णैय ने बताया कि शुरुआत में दिल्ली के व्यापारी कोटा में सोफटी लेकर आए थे। उससे पहले कोई उसके बारे में नहीं जानता था। मात्र 20 से 25 पैसे में सोफ्टी मिल जाती थी। मेले में खाने का नया आइटम होने से अधिकतर लोगों ने उसे पसंद भी किया। उसके बाद उसकी डिमांड बढ़ती गई। जिससे मेले में धीरे-धीरे दुकानें भी बढ़ीे और सोफ्टी की कीमत भी। श्यामलाल ने बताया कि मेले में सोफ्टी की कीमत 25 पैसे से 50 पैसा, फिर 1 रुपया, दो रुपया, 5 रुपए, 7 रुपए और काफी समय तक 10 रुपए रही। वर्ष 2017-18 तक मेले में सोफ्टी 10 रुपए में मिलती रही है। उसके बाद इसकी कीमत बढ़ी है। वर्तमान में मेले में अधिकतर कोटा की ही सोफटी  की दुकानें हैं। दुकानों की संख्या भी बढ़कर 50 से 60 हो गई है। साथ ही इसकी कीमत भी 20 रुपए से लेकर 30, 40 व 50 रुपए तक हो गई है। 

ताजा व सोफ्ट होने से बनी सबकी पसंद
सोफ्टी व्यवसायी प्रमोद लोधा ने बताया कि ब्रांडेड कम्पनी की आइसक्रीम की डिमांड रहती है। लेकिन उससे अधिक सोल्टी को पसंद किया जाता है। वैसे तो यह पूरे साल बिकती है। लेकिन मेले में इसकी मांग अधिक रहती है। शुरुआत में यह काफी सस्ती थी। साथ ही इसे अधिक पसनद करने का कारण है इसका ताजा व सोल्ट होना।  सोल्टी हाथो-हाथो ग्राहक के सामने बनाकर दी जाती है। साफ सफाई का पता रहता है। साथ ही खाने में इतनी अधिक सोफ्ट रहती है कि बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक और बिना दांत वाले लोग भी इसे आसानी से खा लेते हैं। प्रमोद लोधा ने बताया कि शुरुआत में सोफटी एक फ्लेवर में आती थी। लेकिन वर्तमान में दुकानदारों ने समय के साथ फ्लेवर में बदलाव किया। वर्तमान में करीब आधा दर्जन से अधिक फ्लेवर में सोल्टी मिल रही है। 

पहले एक पाव से आधा किलो का होता था हाथी जाम
दशहरा मेले में हाथी जाम भी अधिकतर लोगों की पसंद बनी हुई है। शुरुआत में एक हाथी जाम एक पाव से आधा किलो तक का होता था। मेला व्यापारियों ने बताया कि मेले में हाथी जाम की शुरुआत कंटगी के व्यापारी ने की थी। उस समय  हाथी जाम की एक दी दुकान होती थी। एक पाव से आधा किलो वजन का होने से उसे हाथी जाम नाम दिया गया था। एक हाथी जाम एक रुपए का आता था। जिसे चार पीस में काटकर दिया जाता था। लेकिन समय के साथ हाथी जाम में भी बदलाव होता गया। वर्तमान में कोटा में कई दुकानदार हाथी जाम बनाने लगे। लेकिन अब उसकी साइज छोटी होती जा रही है। वर्तमान में गुलाब जामुम के बराकर आकार के काला जाम और उससे कुछ बड़े बनने पर ही उसे हाथी जाम कहा जा रहा है। वर्तमान में छोटा काला जाम 10 रुपए पीस और उससे बड़ा 20 से 25 रुपए में मिल रहा है। फूड कोर्ट से लेकर कई  जगह पर हाथी जाम के ठेले भी लगने लगे हैं। 

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मेले से गायब है कोटा कचौरी का स्वाद
दशहरा मेले में जहां पूरा फूड कोर्ट बना हुुआ है। वहां हर तरह के खाने-पीेने के आइटम मिल रहे हैं। फास्ट फूड से लेकर साउथ इंडियन तक और नसीराबाद के कचौड़ी से लेकर गोभी के पकौड़े तक मिल रहे हैं। लेकिन कोटा के इतने बड़ेी राष्ट्रीय स्तर के मेले में कोटा की प्रसिद्ध कोटा कचौरी का स्वाद ही लोगों को नहीं मिल रहा है। जबकि शहर के हर कोने में कचौरी की छोटी-बड़ी सैकड़ों दुकानें लगी हुई हैं। 

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