लचर व्यवस्था के सीन चले और बन गई आरटीयू की डर्टी पिक्चर
नवज्योति ने खोली आरटीयू में अव्यवस्था की परतें, ग्रेड मोडरेशन कमेटी का निष्क्रिय रहना सबसे बड़ा कारण, तो नहीं लगता दामन पर दाग
दैनिक नवज्योति ने यूडी आॅटोनॉमस रेगुलेशन को खंगाला तो कईं चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। जिसमें वर्ष 2019 से ग्रेड मोडरेशन कमेटी का निष्क्रय रहना सबसे बड़ा कारण रहा। यदि यह कमेटी सक्रिय रहती तो परमार जैसे मामले चाहकर भी नहीं हो सकते थे।
कोटा। एक गंदी मछली पूरा तालाब गंदा कर देती है, यह कहावत इन दिनों राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय में चरितार्थ हो रही है। उच्च शिक्षा में प्रतिष्ठा रखने वाली यूनिवर्सिटी के दामन को ऐसी ही गंदी मछलियों ने दागदार किया। पहले, तत्कालीन कुलपति की काली करतूत ने विश्वविद्यालय की सांख को गहरा आधात पहुंचाया, अब प्रोफेसर की घिनौनी हरकत ने आरटीयू को शिक्षा जगत में शर्मसार कर दिया। राजस्थान की पहली टेक्निकल यूनिवर्सिटी में शिक्षा के नाम पर गंदा खेल खेला जा रहा था, जिसकी किसी को कानों-कान खबर तक नहीं लगी। कोई परीक्षा में पास करने की एवज में छात्रा से अस्मत मांग रहा तो कोई महिला संविदाकर्मी से छेड़छाड़ व छात्रा से मारपीट के आरोप में घिरा। ऐसे दागी शिक्षक कैसे अपनी मनमानी चला रहे थे, रैकेट किसी की नजरों क्यों नहीं आए..., यूनिवर्सिटी का सिस्टम इतना लचर क्यों रहा, तमाम सवालों के जवाब तलाशने को दैनिक नवज्योति ने यूडी आॅटोनॉमस रेगुलेशन को खंगाला तो कईं चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। जिसमें वर्ष 2019 से ग्रेड मोडरेशन कमेटी का निष्क्रय रहना सबसे बड़ा कारण रहा। यदि यह कमेटी सक्रिय रहती तो परमार जैसे मामले चाहकर भी नहीं हो सकते थे।
नियमों के उल्लंघन से परमार का बढ़ा हौसला
कोटा में राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय की स्थापना वर्ष 2006 में हुई थी। ुिवश्वविद्यालय के यूजीसी ओटनोमस रेगुलेशन इतने मजबूत हैं कि यदि इन नियमों की सशर्त पालना होती तो परमार जैसी घटना चाहकर भी नहीं हो सकती थी। इन नियमों में बैच रोटेशन, सब्जेक्ट रोटेशन तथा ग्रेड मोडरेशन प्रमुख हैं। हालात यह हैं कि 4-5 साल तक एक ही शिक्षक बीटेक के प्रथम सेमेस्टर से चार सेमेस्टर तक एक ही बैच को एक ही टॉपिक पढ़ाता रहा तो कोई लंबे समय तक प्रोजेक्ट मैनेजर बना रहा। ऐसे में उन्हें मनमानी करने का मौका मिलता रहा। इतना ही नहीं, स्टूडेंटस के रिजल्ट पर नजर रखने वाली ग्रेड मोडरेशन कमेटी का भी गठन नहीं किया गया। जिसकी वजह से विद्यार्थियों को फेल पास करने का खेल पकड़ में नहीं आया। जबकि, इस कमेटी का मुख्य काम असीमान्य रिजल्ट की जांच कर गलतियां दुरस्त करने का है।
सब्जेक्ट रोटेशन पॉलिसी
यूडी आॅटोनॉमस रेगुलेशन में सब्जेक्ट रोटेशन की पॉलिसी है। जिसके तहत शिक्षक अपनी ब्रांच में किसी एक सब्जेक्ट को बार-बार नहीं पढ़ाए। एक विषय को अलग-अलग शिक्षक पढ़ाएं ताकि बच्चों को क्वालिटी एजुकेशन मिले और शिक्षक बच्चों से ज्यादा कनेक्ट न हो पाएं। इसके बावजूद आरोपी परमार चार-पांच साल से एक ही सब्जेक्ट एक ही बैच को पढ़ा रहा था। उसने जो सब्जेक्ट पिछले साल पढ़ाया वहीं अगले साल उसी बैच के बच्चों को पढ़ाया। इस दौरान परमार के बैच भी नहीं बदले गए। जिसकी वजह से उसे स्टूडेंटस पर अपनी तानशाही थोपने का अवसर मिलता रहा। यदि यह पॉलिसी अपनाई जाती तो इस तरह की घटना न होती।
ये मजबूत नियम जिनकी नहीं हुई पालना
बैच रोटेशन
बैच रोटेशन के तहत एक टीचर जिसने एक साल प्रथम वर्ष के स्टूडेंटस के बैच को पढ़ाया तो वह अगले वर्ष में उस बैच को द्वितीय वर्ष में नहीं पढ़ाएगा। इसका फायदा यह है कि शिक्षक को बैच बदलकर मिलने से वह विद्यार्थियों से लंबे समय तक कनेक्ट नहीं हो पाएगा और सम्पर्क में भी नहीं रह पाएगा। इसके अलावा संबंधित टॉपिक को दूसरा शिक्षक बेहतर ढंग से पढ़ाएगा। जिससे शिक्षा में गुणवत्ता बढ़ेगी। लेकिन आरोपी परमार इलेक्ट्रोनिक्स बीटेक प्रथम वर्ष के बच्चों को चौथे सेमेस्टर में भी पढ़ा रहा था। लंबे समय तक प्रोजेक्ट मैनेजर भी बना रहा। इसी वजह से वह विद्यार्थियों को फेल पास करने की धमकी देता रहा।
ग्रेड मॉडरेशन
आॅटोनॉमस रेगुलेशन में ग्रेड मॉडरेशन कमेटी गठित किए जाने का प्रावधान है। विभागाध्यक्ष इस कमेटी का गठन करता है, जिसमें तीन सदस्य मनोनीत किए जाते हैं। यह कमेटी विद्यार्थियों के परीक्षा परिणाम पर नजर रखती है, हर गतिविधियों की मॉनिटरिंग करती है। असमान्य परिणाम घोषित होने पर कमेटी द्वारा जांच की जाती है। यदि इसमें कॉपी चेक करने वाला शिक्षक दोषी पाया जाता है तो उसके खिलाफ अग्रिम कार्रवाई के लिए रिपोर्ट तैयार कर विभागाध्यक्ष को दी जाती है। लेकिन वर्ष 2019 के बाद से इस कमेटी का गठन नहीं किया गया। जिसकी वजह से आरोपी प्रोफेसर परमार द्वारा परीक्षा परिणाम में बरती गई मनमानी अंकुश नहीं लग सका।
कैसे काम करती है ग्रेड मॉडरेशन कमेटी
यूडी आॅटोनॉमी रेगुलेशन में ग्रेड मॉडरेशन पोलिसी होती है। विश्वविद्यालय में यह कमेटी खास तौर पर परीक्षा परिणाम की मॉनिटरिंग के लिए गठित की जाती है। उदारहण के लिए मान लिया जाए किसी सेमेस्टर में 40 विद्यार्थी हैं, परिणाम में सारे विद्यार्थियों को ए ग्रेड मिली हो या सभी को डी ग्रेड, आधे से ज्यादा विद्यार्थी फेल कर दिए गए तथा किसी भी तरह से परिणाम असमान्य लगने पर कमेटी सदस्य रिजल्ट की जांच करती है। इसके अलावा ऐसे विद्यार्थी जिसके 4 सब्जेक्ट में ए ग्रेड आई हो और 5वें सब्जेक्ट में डी या ई ग्रेड आ जाए तो भी यह कमेटी उस विद्यार्थी की कॉपी की जांच करेगी।
फायदा : ग्रेड मॉडरेशन कमेटी का फायदा यह होता है कि परीक्षा परिणाम सही है या नहीं, इसकी जांच हो जाती है। साथ ही रिजल्ट में शिक्षक का विद्यार्थी के प्रति इन्टेंशन का भी पता लग जाता है।
आरटीयू से संबद्ध कॉलेजों में यूं होती कॉपी चेक
आरटीयू से मान्यता प्राप्त कॉलेजों में कॉपियां चेकिंग का नियम अलग है। इंजीनियरिंग महाविद्यालयों में विद्यार्थियों की उत्तर पुस्तिकाओं का बंडल बनाया जाता है फिर कोडिंग की जाती है। इसके बाद ये बंडल कहीं भी जांचने के लिए भेज दिए जाते हैं। खास बात यह है कि विद्यार्थियों को पता नहीं होता कि उनकी कॉपियां कौन शिक्षक चेक कर रहा है। जबकि, आरटीयू में विद्यार्थियों को इसके बारे में पता होता है।
पेपर बनाने से लेकर कॉपियां जांचने तक काम क्लास शिक्षक पर
राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय को आॅटोनॉमस है। जिसके तहत यूनिवर्सिटी में कार्यरत शिक्षक अपने-अपने संकाय के परीक्षा पेपर खुद ही सेट करते हैं और कॉपियां भी खुद ही चेक करते हैं। इसके जहां फायदे हैं तो नुकसान भी हैं। जैसे, टीचर का स्टूडेंट्स पर दबाव, छात्रों को घरों पर बुलाकर कॉपियां भरवाना, परीक्षा से पहले प्रश्न विद्यार्थियों को बता देना फिर एन वक्त पर प्रश्न बदलकर बदले की भावना से छात्रों को फेल करना। इस तरह के नुकसान प्रो. परमार की वजह से स्टूडेंट्स को भुगतने पड़े।
5 साल तक प्रोजेक्ट कॉर्डिनेटर बना रहा परमार
शिक्षाविदों का कहना है कि वर्तमान में यूनिवर्सिटी में जो घटना घटी, उसके लिए आरटीयू का लचर सिस्टम जिम्मेदार है। आरोपी प्रो. परमार लंबे समय से इलेक्ट्रॉनिक विभाग के प्रथम सेमेस्टर से चतुर्थ सेमेस्टर तक विद्यार्थियों को पढ़ा रहा था। वहीं, पिछले 5 साल से बीटेक फाइनल ईयर का प्रोजेक्ट कॉर्डिनेटर भी रहा। ऐसे में स्टूडेंट्स को अपनी प्रोजेक्ट व इंडस्ट्रियल रिपोर्ट भी इसी को सबमिट करनी पड़ती थी। वह विद्यार्थियों पर दबाव बनाकर फेल करने की धमकी देता था। शिक्षा की आड़ में वह छात्र-छात्राओं को प्रताड़ित कर रहा था। इसके बावजूद आरटीयू प्रशासन आंखें मूंदे रहा।

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