प्रदेश में इस मानसून 65 फीसदी से ज्यादा बारिश : 125 सालों में दूसरी बार सबसे ज्यादा बरसात, राज्य में लगभग विदा हो चुका है मानसून

66 फीसदी बांध भरे 

प्रदेश में इस मानसून 65 फीसदी से ज्यादा बारिश : 125 सालों में दूसरी बार सबसे ज्यादा बरसात, राज्य में लगभग विदा हो चुका है मानसून

राजस्थान में अब मानसून लगभग विदा हो चुका है।

जयपुर। राजस्थान में अब मानसून लगभग विदा हो चुका है। राज्य में इस बार मानसून की रिकॉर्ड बारिश हुई है। बीते 125 सालों यानी साल 1901 से 2025 तक में इस साल का ही ये ऐसा सीजन है, जब दूसरी बार सबसे ज्यादा बरसात हुई। मौसम विशेषज्ञों ने बताया कि इस बार राजस्थान में औसत से 65 फीसदी से ज्यादा बरसात हुई है। राजस्थान में 1 जून से 24 सितंबर तक 712.2 एमएम बरसात हो चुकी है। जबकि मानसून के एक सीजन में औसत बरसात 436.5 एमएम होती है। इससे पहले साल 1917 में इससे ज्यादा बरसात दर्ज हुई थी। साल 1917 में कुल 844.2 एमएम बरसात मानसून सीजन में दर्ज हुई थी। जयपुर जिले में सामान्य बारिश एक जून से 24 सितम्बर तक 519.3 एमएम होती है। इस साल इस अवधि तक 915 एमएम बारिश जयपुर जिले में हो चुकी है।

बारां जिले में सबसे तेज बारिश :

राजस्थान में इस सीजन में सबसे ज्यादा बरसात बारां जिले में हुई। यहां पूरे सीजन में अब तक कुल 1589 एमएम बरसात हो चुकी है, जबकि यहां सीजन में औसत बरसात 827 एमएम होती है। बारां के अलावा बांसवाड़ा, भीलवाड़ा, बूंदी, दौसा, धौलपुर, झालावाड़, करौली, कोटा, प्रतापगढ़, सिरोही और टोंक ऐसे जिले है जहां 1000 एमएम से ज्यादा बरसात हो चुकी है।

66 फीसदी बांध भरे :

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राजस्थान में इस बार अच्छी बारिश का ही नतीजा है कि 66 फीसदी बांध फुल हो गए। जल संसाधन विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में छोटे-बड़े 693 बांध है, जिनमें से 457 बांध ओवर-फ्लो हो चुके हैं। जबकि 132 बांध ऐसे हैं, जहां 10 से लेकर 95 फीसदी तक पानी भरा है। इस साल राजस्थान में लगातार बारिश के कारण रेगिस्तान में सूखी पड़ी लूणी नदी में भी 18 जुलाई को पानी आ गया।

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इन जिलों में बाढ़ जैसे हालात बने :

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बूंदी, कोटा, सवाईमाधोपुर, टोंक, पाली, भीलवाड़ा में भारी बरसात से इस सीजन में बाढ़ जैसे हालात हो गए थे। इस पूरे महीने में सबसे ज्यादा 503 एमएम बरसात बूंदी के नैनवां में एक ही दिन में दर्ज हुई। भारी बारिश के इन जिलों के अलावा अन्य जिलों में भी कई इलाके पानी में डूब गए और कई लोग इसकी चपेट में आने से मर गए। फसलें खराब हो गई और कई कच्चे-पक्के मकान ढ़ह गए।

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