वायरल भंवर : अश्लीलता की सार्वजनिक बाढ़, कानून की लाचारी और समाज की चुप्पी!

राजमार्ग पर सत्ता और अश्लीलता का संगम 

वायरल भंवर : अश्लीलता की सार्वजनिक बाढ़, कानून की लाचारी और समाज की चुप्पी!

विशेषज्ञों का कहना है कि ये घटनाएं सिर्फ कानूनी उल्लंघन ही नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना के क्षरण और बढ़ते मनोरोगों का संकेत हैं।

जयपुर। देश के शहरों से आ रही वीडियो क्लिपिंग्स न केवल हमारी आंखों को चौंधिया रही हैं, हमारे सामाजिक ताने-बाने को भी उधेड़ रही हैं। राजमार्ग हो या मेट्रो स्टेशन, होटल का कमरा हो या अंडरपास, हर जगह एक ही दृश्य दोहराया जा रहा है: सार्वजनिक अश्लीलता, कैमरे में कैद, और फिर सोशल मीडिया पर वायरल! क्या यह रोमांच है, लापरवाही है, प्रदर्शन की भूख है या कानून का मखौल? विशेषज्ञों का कहना है कि ये घटनाएं सिर्फ कानूनी उल्लंघन ही नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना के क्षरण और बढ़ते मनोरोगों का संकेत हैं।

राजमार्ग पर सत्ता और अश्लीलता का संगम 
एक राजनेता से जुड़े व्यक्ति का कृत्य सोशल मीडिया पर फूटा।
अंडरपास में लग्जरी गाड़ी से अश्लीलता तक
खुलेआम किए गए कृत्य ने सार्वजनिक शालीनता पर सवाल उठाए।
शोषण वीडियो: जब कैमरे ने बनाई इंसानियत की मजाक उड़ाती फिल्म 
बुजुर्ग को फँसाकर किया गया उत्पीड़न और वीडियो पोर्न साइट पर डाला गया।
होटल की खुली खिड़कियों ने परोसी निजता की बलि 
फ्लाईओवर से साफ दिख रहे कृत्य ने गोपनीयता पर बहस छेड़ी।
मेट्रो स्टेशन बना 'मोमेंट ऑफ वॉयुरिज्म'
यात्रियों के बीच जोड़े का अनुचित व्यवहार वायरल, साथ ही वीडियो बनाने वालों की नैतिकता भी सवालों में।
चलती कार में 'ऐड्रेनालिन' या अराजकता? 
सड़क पर अश्लीलता के साथ यातायात सुरक्षा को भी ताक पर रखा।

'देखने' और 'शेयर' करने की भूख 
'देखने' और 'शेयर' करने की लोगों की भूख भी कम खतरनाक नहीं। एक क्लिक में दूसरों की गरिमा तार-तार हो रही है।

क्या कहता है कानून?
धारा 296 (BNS): सार्वजनिक अश्लीलता पर 3 महीने की सजा या जुमार्ना
IT Act की धारा 67: अश्लील वीडियो प्रसारण पर 3 से 5 साल की कैद
गोपनीयता का अधिकार (2017): किसी की सहमति के बिना वीडियो बनाना अपराध
POCSO, 1986 अधिनियम: नाबालिग पर सामग्री हो तो कड़ी सजा 

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सामाजिक परछाइयां
लैंगिक असमानता: महिला को अधिक दोषी ठहराया जाता है, पुरुष की भूमिका गौण रहती है।
डिजिटल अपराध की परतें: पीड़ित का दूसरा शोषण आॅनलाइन ट्रोलिंग और बदनामी के रूप में होता है।
चुप्पी और दर्शकवाद: देखने और चुप रहने वाला समाज भी दोषी है।

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अब क्या करें?
ऐसे वीडियो न बनाएं, न शेयर करें : यह अपराध है और नैतिक पतन का कारण भी।
जागरूकता बढ़ाएं : स्कूलों और समाज में डिजिटल नैतिकता पर बात करें।
कानूनी सलाह लें : साइबर सेल या पुलिस से संपर्क करें।
प्लेटफॉर्म को जिम्मेदार बनाएं : रिपोर्ट करें, वायरल करने में भागीदार न बनें।

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हम कहां जा रहे हैं? 
वायरल वीडियो एक समाज का एक्स-रे हैं। हम किस दिशा में जा रहे हैं? क्या हम संवेदनशीलता, गरिमा और मयार्दा को तकनीकी मनोरंजन की बलि चढ़ा देंगे? या हम खुद को और समाज को जागरूक बनाकर इस वायरल भंवर से बाहर निकलेंगे?

क्या आप जानते हैं?
धारा 67 (IT Act) के तहत, एक बार अश्लील वीडियो भेजना = 3 साल की सजा

पीड़ित की सहमति के बिना बनाया गया वीडियो = गोपनीयता का उल्लंघन
वीडियो भेजने वाले भी अभियुक्त हो सकते हैं, सिर्फ बनाने वाला नहीं

ये कृत्य सोशल मीडिया पर वायरल होने की लालसा, रोमांच की तलाश या सत्ता की भावना से उपजते हैं। 
-डॉ. राजीव गुप्ता (समाशास्त्री)

शहरी भीड़ में गुमनाम रह जाने का भ्रम भी लोगों को ऐसे कृत्यों के लिए प्रेरित करता है। 
-डॉ. शिव गौतम (मनोचिकित्सक)

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