सुर-ताल फेस्टिवल : शास्त्रीय, लोकनृत्य और लघु नाटकों की शानदार प्रस्तुतियां, प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र देकर किया सम्मानित
कठपुतली नाट्य पधारो म्हारे देश ने लोक संस्कृति की आत्मा को किया जीवंत
प्रेरणा भूयान की सत्रिया नृत्य कार्यशाला के अंतर्गत प्रस्तुत कृष्ण जन्म और कालिया मर्दन प्रसंग ने असम की समृद्ध नृत्य परंपरा का अद्भुत दर्शन कराया।
जयपुर। जेकेके और अंजना वेलफेयर सोसाइटी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सुर-ताल फेस्टिवल का बुधवार को रंगायन सभागार में उत्साहपूर्ण समापन हुआ। इस अवसर पर शास्त्रीय नृत्य, लोक नृत्य, लघु नाटक, माइम और कठपुतली कला की विविध प्रस्तुतियों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। समापन समारोह में प्रतिभागियों ने कार्यशालाओं के दौरान सीखी कलाओं का मंचन कर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। इस मौके पर सभी प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में केंद्रीय राज्य मंत्री एस.पी. सिंह बघेल, केंद्र की वरिष्ठ लेखाधिकारी बिंदु भोभरिया, सोसाइटी की निदेशिका माया कुलश्रेष्ठ, अभिनेता ओम कटारे सहित बड़ी संख्या में कला-प्रेमी उपस्थित रहे। कार्यक्रम की शुरुआत कथक की नवरस आधारित प्रस्तुति से हुई, जिसमें स्त्री-शक्ति और नायिका भेद की झलक देखने को मिली। प्रेरणा भूयान की सत्रिया नृत्य कार्यशाला के अंतर्गत प्रस्तुत कृष्ण जन्म और कालिया मर्दन प्रसंग ने असम की समृद्ध नृत्य परंपरा का अद्भुत दर्शन कराया। सूक्ष्म गतियों और भावपूर्ण मुद्राओं ने प्रस्तुति को और भी आकर्षक बनाया।
थिएटर कार्यशाला, जिसे ओम कटारे ने निर्देशित किया में 20 प्रतिभागियों ने अभिनय की बारीकियों को आत्मसात किया। समापन पर प्रस्तुत लघु नाटक 10 दिन की छुट्टी, लव स्टोरी और क्लासरूम ने सामाजिक जीवन के विविध आयामों को रंगमंच पर सजीव कर दिया। साथ ही विशेष प्रस्तुति में मूक-बधिर बच्चों ने एकलव्य की कथा को माइम के माध्यम से प्रस्तुत कर दर्शकों को भाव-विभोर कर दिया। राजस्थान की लोक धरोहर भी मंच पर खूब सजी। मीना सपेरा और समूह की कालबेलिया व घूमर की मनमोहक प्रस्तुतियां और कठपुतली नाट्य पधारो म्हारे देश ने लोक संस्कृति की आत्मा को जीवंत कर दिया। इसी दौरान चित्रकला और शिल्प कार्यशालाओं में बनी कलाकृतियों की प्रदर्शनी भी दर्शकों को आकर्षित करती रही।

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